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________________ ॥ प्रस्ता ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ वना॥ कायोत्सर्ग करवा जणाब्युं छे जे देखीतीज भूल छे, कंकणमोचन विधि तो दूर रही पण हजी मंगल गाथा पाठ बोली अक्षतांजलिये नथी नाखी ते पहेला प्रतिष्ठा देवतानुं विसर्जन करवानो काउस्सग्ग! केवी प्रत्यक्ष भूल!, बीजा एके एक प्रतिष्ठाकल्पकारे कंकण छोटणविधि कर्या पछी नन्द्यावर्त अने प्रतिष्ठा देवताने विसर्जन करवानुं विधान कर्यु छे, मात्र एक विशालराज शिष्यना प्रतिष्ठाकल्पमां अंजन विधि पछीना चैत्यवन्दनमा 'प्रतिष्ठादेवता- विसर्जनार्थं' एवा शब्दो भूलथी लखाई गया छे, जेनुं अनुसरण आ कल्पमां पण थयु छे. पण वि.शि.कल्पमां ते आगे जतां आ भूलनो स्फोट थइ गयो छे, तेमा आगल उपर आपेल कंकण मोचन विधिमां प्रतिष्ठा देवतार्नु विसर्जन करवामां आव्युं छे, एथी ज खुल्लु जणाइ आवे छे के पूर्व कायोत्सर्ग प्रसंगे जे 'विसर्जनार्थ' शब्द आब्यो छे ते प्रामादिक छे अने ए प्रमाद 'कल्पकार' नो नहि पण प्रतिलेखकनो ज होई शके, प्रतिष्ठाकल्पकारे पोते कंकण मोचन प्रसंगे ज नन्दावर्त अने प्रतिष्ठा देवता विसर्जनार्थ काउस्सग्ग करवानु लख्युं छे, पण आठमा आधुनिक प्रतिष्ठाकल्प लेखकने आ भूल प्रतिलेखकनी छे आ वात समजवामां न आवी तेथी ते भूल पोताना प्रतिष्ठाकल्पमा विधिरुपे मानी लीधी, ए ज कारण छे के एमणे कंकणमोचन विधि ज लखी नथी, मात्र नन्द्यावर्त अने प्रतिष्ठा देवतामा विसर्जन मंत्रोद्वारा तेमनुं विसर्जन करी दीधुं छे अने अंते कंकणमाचननो आदेश मात्र को छे, विधि के मंत्रादि कंइ लख्युं नथी, ज्यारे बीजा प्रतिष्ठाकल्पोमा प्रथम विधि पूर्वक कंकणमोचन कर्या पछी नंद्यावर्त-प्रतिष्ठादेवतार्नु विसर्जन करवानुं विधान छे अने छेवटे अष्टोत्तरशत जलकलशोथी प्रतिमानो अभिषेक करवानुं विधान पण घणा प्रतिष्ठाकल्पोमा मळे उपर जणावेल भूल साधारण नथी पण महत्त्वनी छे अने ए जल्दी सुधारची जोइये. (११) आ प्रतिष्ठाकल्पमां पंचकल्याणको विधान उमेरतां केवल विधिनां दिवसोमां ज नहिं पण प्रतिष्ठानी सामग्रीमां पण अनेकगणो ॥ Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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