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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ प्रस्तावना ।।
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श्यामाचार्यकृत मानी लेवामां आवे तो अमने बांधो नथी पण तेमांय कल्याणकविधिनुं ते नाम निशान पण नथी, 'प्रतिष्ठाविधि पंचाशक' | ने जो श्रीहरिभद्रसूरिनो कल्प मानी लीधो होय तो तेमां पण कल्याणकोनुं विधान नथी, हेमाचार्यनो प्रतिष्ठाकल्प हमणां क्यांये मलतो नथी अने पूर्वे हतो एमां प्रमाण नथी गुणरत्नाकर नामे कोइ पण आचार्य श्वेताम्बरसंप्रदायना थया होय एबुं अमारी जाणवामां नथी., का रत्नाकरसूरि अने गुणरत्नाकर नामे कोइ पण आचार्य आपणामां जरुर थया छे, अने गुणरत्नसूरिजीनो तो प्रतिष्ठाकल्प पण विद्यमान छे. पण तेमां कल्याणक विधि के बीजी एवी कोई वस्तु नथी के आ प्रकृत प्रतिष्ठाकल्पनी समर्थक थइ शके ?
(८) उपरनां कारणो उपरान्त आ कृतिनी नवीनता साबित करनार मुख्य प्रमाण ए छे के आमां प्रौढता गंभीरता के वचनचमत्कृति | नथी, पूर्वोक्त महाविद्वान् आचार्योनी कृतिनो आधार लइने बनावेली कृति आटली बधी नीरस अने निस्सत्व होय ए मानी शकाय तेम नथी.
(९) ए सिवाय आ प्रतिष्ठाकल्पमा एक बीजी ध्यान खेंचनारी वात ए छे के एना पुरोगामी सर्व प्रतिष्ठाकल्पकारो ३६० क्रयाणकोनी पुडीओ अथवा सर्वनो एक पुडो बांधीने, अधिवासना कर्या पछी प्रतिमानी आगल मूकवानुं विधान करे छे, त्यारे आ कल्पकार अंजनविधान धया पछी प्रतिमाना हाथमां क्रयाणकोनो पुडो मूकवानुं लखे छे, आ वस्तु पण निर्णय मांगे छे, धान्यक्षेप, धान्यस्नान आदि प्रसंगा अधिवासनाना अवसरे ज आवे छे, अंजनविधान पछी तो गंध, पुष्प, चन्दनादिथी पूजा अने लाडवा आदि विविध पक्वान्नो मुकवानु ज सर्व कल्पोमां विधान करायेलु छ, प्रतिष्ठा पछी ३६० क्रयाणकोनो पुडो प्रतिमाना हाथमां आपवानुं विधान आ सिवाय बीजा कोइ कल्पमा नथी, एटले ए विषय विचारणीय छे.
(१०) आ कल्पमां अंजन विधान पछी निर्वाण कल्याणकनी विधि लखी छे अने ते पछीना देवन्दनमा प्रतिष्ठा देवता 'विसर्जनार्थ'
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