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॥ कल्याण
ह्रिके
कलिका. खं०२॥
नंद्यावर्त पूजन विधि - नंद्यावर्तनुं पूजन करतां प्रत्येक पदस्थित देवना नामनी आदिमां "ॐ" अने अन्तमां चतुर्थी विभक्ति || लगाडी पूजार्थक 'नमः' शब्दनो प्रयोग करवो."
ana| द्वितीयानंद्यावर्तन पूजन वासक्षेप तथा कर्पूरना चूर्ण बडे प्रतिष्ठाचार्यना हाथे करवानुं विधान छे, जो प्रतिष्ठाचार्य अकथी अधिक होय | म तो पूजन मुख्याचार्ये कर.
नंद्यावर्तादि१ - पूजाना आरंभमा प्रथम वलयना मध्य भागे परमेष्ठिमुद्रा -
पूजनविधि "ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय, चतुर्मुखपरमेष्ठिने, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, I त्रैलोक्यमहिताय, आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।"
आम आह्वान करी "ॐ जिनाय नम;" आ मंत्रथी वास कर्पूर बडे नंद्यावर्त स्थित जिन- पूजन कबुं, पछी जिननी जमणी बाजुमां "ॐ शक्रेन्द्राय नमः" ॐ श्रृतदेवतायै नमः । अने डाबी बाजूमां ॐ इशानेन्द्राय नमः ॐ शान्तिदेवतायै नमः । आ नाममंत्रो बोलीने शक्रेन्द्र, श्रुतदेवता, ईशानेन्द्र अने शान्तिदेवतानी वासचूर्णे पूजा करवी.
२ - बीजा वलयना पूर्वादि कोष्ठकोमा सृष्टिक्रमे -
ॐ नमः सिद्धेभ्यः १, ॐ नमः आचार्येभ्यः २, ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः ३, ॐ नमः सर्वसाधुभ्यः ४, ॐ नमो ज्ञानेभ्यः ५, ॐ नमो दर्शनेभ्यः ६, ॐ नमश्चारित्रेभ्यः ७, ॐ नमः शुचिविद्यायै ८,
आ प्रमाणे नाम मंत्रोच्चारण पूर्वक आलेखक्रमे वास-चूर्णवडे पूजा करवी. ३ - जीजा वलयमां - २४ जिनमाताओनी नीचे प्रमाणे नाममंत्रो वडे वासचूर्णे पूजा करवी.
।। १०३ ॥
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