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________________ ।। कल्याणकलिका. | खं०२॥ || अष्टोत्तरी शतस्नात्र विधिः ॥ ॥ ४५७॥ ॐ ह्री पुष्पकरेभ्यो नमः । आ मंत्रथी बे मालाधरो उपर. ॐ श्रीं शंखधराय नमः । आ मंत्रथी शंखधरो उपर. अने - ॐ पूर्ण कलशाय नमः । आ मंत्रथी कलश उपर. प्रत्येकने ३-३ वार वासक्षेप करवो, परिकरनी प्रतिष्ठा करी आगे अनेक फल नैवेद्य ढोवां धूप करवो. ते पछी शुभ समयमा परिकर यथास्थान जोडी ते दिवसे अथवा त्रीजे पांचमे अथवा सातमे दिवसे पंचामृत स्नात्र भणावी चैत्यवंदना | करि कंकण छोटनार्थ प्रतिष्ठादेवता स्थिरीकरणार्थं १ लोगस्सनो का० करवो, उपर प्रगट लोगस्स कहेवो, पछी सौभाग्य मुद्राए सौभाग्य मंत्रनो न्यास करी सर्षपग्रंथी अने कांकण छोडवां. (३) चतुर्निकाय देवमूर्ति प्रतिष्ठा विधि ॥ दश प्रकारना भवनपति देवो, वीस भवनपतिओना इन्द्रो, सोल प्रकारना व्यन्तर देवो, बत्रीस व्यन्तरोना इन्द्रो, बार देवलोक, नव | ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर विमानना देवो अने बार देवलोकना दश इन्द्रो आ बधानी ते ते वर्णनी काष्ठमयी, धातुमयी अने रत्नघटित मूर्तिओनी प्रतिष्ठानो विधि आ प्रमाणे छे. देहरामां अथवा घरमां प्रथम बृहत्स्नात्र विधिथी जिनस्नात्र भणावी, एकत्र थयेल पंचामृतवडे प्रतिष्ठाप्य देव प्रतिमाने स्नान करावबुं, शुद्ध जल पखाली, लुंछीने यक्षकर्दमनुं विलेपन करवू, धूप उखेववो, अने प्रतिष्ठामंत्र भणी पच्चीस वस्तुनो बनावेल वासक्षेप करी, तेनी प्रतिष्ठा करची. प्रतिष्ठा मंत्र नीचे प्रमाणे छे. “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्यूँ कुरु कुरु तुरु तुरु कुलु कुलु चुरु चुरु चिरि चिरि चिलि चिलि किरि किरि किलि किलि NIN Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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