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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
॥ प्रस्तावना ।।
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स
॥ १६ ॥
ग्रंथरूपे गणी शकाय. आ बधा कल्पोने अमो कालानुसार नंबर आपीने अनुक्रमे परिचय करावीशुं.
(१) आजे आपणा श्वेताम्बर संप्रदायमां सर्वथी प्राचीन प्रतिष्ठा पद्धति श्रीपादलिप्तसूरिजीकृत 'निर्वाणकलिका' छ, यद्यपि आमां उद्धृत प्राकृत गाथाबद्ध पद्धति के जेनो ग्रंथकारे 'आगम' कहीने पोतानी पद्धतिमा समावेश कर्यो छे, निर्वाण कलिका करतां ये घणी जुनी छे, छतां अमो एने निर्वाणकलिकाना मूल तरीके ज गणी लइये छीये, कारण के ए प्राकृतपद्धतिना प्रारंभ के समाप्तिनो एमां उल्लेख नथी, तेमज ए उपरना मंत्रभागनो पण पत्तो नथी..
निर्वाण कलिका' ना निर्माण समयने अंगे निश्चितरूपे कहेवू शक्य नथी, छतां ए कहेवामां बांधो पण नथी के ए ग्रन्थनी रचना चैत्यवासनी प्रवृत्ति थया पछीनी छे, एटले विक्रमना पांचमां सैकानी आसपासना समयमा ए पद्धतिनी रचना थइ हशे, एना अंतरंग निरूपणथी पण एज समयनुं अनुमान थइ शके छे.
(२) अमारी पासेना प्रतिष्ठाकल्पोमां निर्वाणकलिका पछीनो नंबर श्रीचन्द्रसूरिकृत प्रतिष्ठापद्धतिने फाले जाय छे. आ प्रतिष्ठाविधि सुबोधा सामाचारीना अंतमा छपायेल छ, प्रक्षिप्त छतां ये आपणी बीजी पद्धतिओ करतां आ मौलिक अने प्राचीन छे, आनु निर्माण विक्रमना बारमा सैकामां थयुं निश्चितपणे कही शकाय.
(३) आचार्य जिनप्रभसूरिकृत 'विधिमार्ग प्रपा' नामक 'सामाचारी' मां आपेल 'प्रतिष्ठाविधि' नामक 'प्रतिष्ठापद्धति' श्रीचन्द्रसूरिनी प्रतिष्ठापद्धतिने अनुसरनारी छे, छतां कोई कोई विषयमा ए जुदी पडे छे, आनो रचना संवत् १३६३ मा वर्षमा थयेली छे.
(४) ए पछीनी पद्धति श्रीवर्धमानसूरिकृत आचारदिनकरान्तर्गत 'प्रतिष्ठाविधि' छ, आनी रचना समय विक्रमनो पंदरमो सैको छ, | wal आपणी प्रतिष्ठा विधिओमां सौथी अधिक विस्तृत अने चैत्यवासियो अने भट्टारकोनी भरपूर असरवाली ए पद्धति छे.
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