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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ आ काव्य बोली नागपदनी उपर अने इन्द्रनी नीचे आवेल ब्रह्मपदे ब्रह्मेन्द्र उपर पुष्प क्षेप करवो. ए पछी हाथमां पुष्पांजलि लेइ - इति दिगधिपकीर्तनाभिरक्षा-क्षपितसमस्तविपक्षवीतविघ्नः । कुरु सकलसमृद्धिसन्निधानात्, विजितजगत्यभिषेकमङ्गलानि ॥१६॥ आ काव्य बोली दिशापालोना पाटला उपर पुष्पांजलि नाखवी पछी चैत्यवंदन अने साधुवंदन करवू. इति द्वितीयं पर्व. चेत्यवंदनादि करीने - मुक्तालङ्कारविकार-सारसौम्यत्वकान्तिकमनीयम् । सहजनिजरूपनिर्जित - जगत्त्रयं पातु जिनबिंबम् ॥१॥ आ काव्य बोली प्रतिमा उपरथी पुष्प अलंकारादि उतारवा अने - भव्यानां भवसागरप्रतरणद्रोणीप्रसूतिः श्रियां, शश्वत्सत्कलकल्पपादपलतानिर्वाणरथ्या परा । सौरभ्यातिशयादवाप्तमहिमास्वामिन्प्रभावेन ते, प्राप्ताशेषसुखा सुखास्तकलिलाध्यामापि धूमावली ॥२॥ आ काव्य बोलतां धूप उखेववो, पछी पुष्पो लइने - किं लोकनाथ! भवतोऽतिमहातैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चिदुष्णीष देशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥३॥ आ काव्य भणीने जिनप्रतिमाना मस्तके पुष्प चढावबां. अने Jain Education International For Private & Personal use only 'www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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