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________________ ॥ जीर्णो ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ गुरुर्नु शान्तिक-ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, सुपार्श्व, शीतल, श्रेयांस, आ पैकीना कोइ पण एक तीर्थंकरनी प्रतिमाने | पूजी, तेनी आगल कर. शुक्रनु शान्तिक-सुविधिनाथने पूजी तेमनी आगल शुक्रने स्थापीने करवू. शनि- शान्तिक-मुनिसुव्रतने पूजी तेमनी आगल शनिने स्थापीने करवू. राहुर्नु शान्तिक-नेमिनाथनी पूजा करी तेमनी आगल राहुने स्थापीने करवू. केतु- शान्तिक-मल्लिनाथ अथवा पार्श्वनाथने पूजीने तेमनी आगल केतुनी स्थापना करीने करवू. ॥ इति गोचर ग्रहपीडा शान्तिक । विधिः ॥ ॥ २६८ ॥ १२ जीर्णोद्धारविधिः - जीर्णोद्धारविधौ भग्न-खण्डितार्चा विसर्जने । यद् विधेयं विधानं तत्, पादलिप्तोक्तमुच्यते ॥१७९॥ जीर्णोद्धार विधिमां भांगेली अने खण्डित थयेली प्रतिमाना विसर्जनमा जे विधान कराय छे, ते पादलिप्ताचार्ये निर्वाण कलिकामां कह्या प्रमाणे अहियां कहेवाय छे. खण्डित थयेल, फाटेल, भांगेल, वांकीवलेल, जीर्णशीर्ण थयेल, वलेल, सगर्भ, घा लागेल, प्रमाणहीन, प्रमाणाधिक, वांकी, विकराल आकारवाली, भयंकर आकारवाली, मंत्रना अभावथी पिचाश आदिथी अधिष्ठित थयेली, प्रतिमाने उठाडीने तेना स्थाने नवी प्रतिमा प्रतिष्ठित करवी. ॥ २६८ ॥ For Private Jain Education International www.jainelibrary.org Personal Use Only
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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