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के
। कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ जीर्णो
द्धार विधिः ॥
॥ २६९ ॥
प्रतिष्ठाचार्य प्रभातना उठीने नित्य नियम करीने सकलीकरण करे, पछी खंडित स्पुटित भग्नादि कारणे बिंबान्तर स्थापन करवानी इच्छावाला प्रतिष्ठाचार्य शान्ति निमित्ते किपालोने बलिदान आपे ते आ प्रमाणे -
ॐ इन्द्राय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ अग्नये प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ यमाय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ निर्ऋतये प्रतिगृह्ण स्वाहा। ॐ वरुणाय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ वायवे प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ कुबेराय प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ ईसानाय प्रतिगृह्ण स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे प्रतिगृह्ण स्वाहा । ॐ नागाय प्रतिगृह्ण स्वाहा ।
आ प्रमाणे बोलीने पोतपोतानी दिशामा अनुक्रमे बहार बलि फेंकीने वायव्य कोणमां -"ॐक्षा क्षेत्रपालाय स्वाहा ।" आम बोलीने क्षेत्रपालने बलिदान आपी - "ॐ सर्वभूतेभ्यो वषट् स्वाहा ।" ए मंत्र बोलीने भूत आदिनुं संतर्पण करवू, ए पछी चैत्यवंदन कर.
चैत्यवंदन करीने मण्डल पासे आवी ॐकार बडे आसन पूजीने बेसीने भूतशुद्धि अने सकलीकरण करी विशेष अर्धपात्रनी द्रव्यशुद्धि करवी. पछी आसनपूजादि कृत्य करी अर्धपाद्य आचमनीयादि देइने नित्यविधिथी सांग भगवन्तनी पूजा करवी, पछी आयुध सहित लोकपालोनी पूजा करवी.
पूर्व दिशामां ॐ इन्द्राय स्वाहा, ॐ वज्राय स्वाहा । आग्नेय दिशामां ॐ अग्नेय स्वाहा, ॐ शक्तये स्वाहा । दक्षिण दिशामां ॐ यमाय स्वाहा, ॐ दण्डाय स्वाहा । नैर्ऋत दिशामां ॐ निर्ऋतये स्वाहा, ॐ खड्गाय स्वाहा । पश्चिम दिशामां ॐ वरुणाय स्वाहा, ॐ पाशाय स्वाहा । वायव्य दिशामां ॐ वायवे स्वाहा, ॐ ध्वजाय स्वाहा । उत्तर दिशामां ॐ कुबेराय स्वाहा, ॐ गदायै स्वाहा । ईशान दिशामां ॐ ईशानाय स्वाहा, ॐ शूलाय स्वाहा । |
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