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________________ कल्याण | खं० २ ॥ कलिका. प्रतिष्ठा ॥ अने त्रण रेखा वाली श्रेष्ठ कोडी, आ बे वस्तुओ स्थापन करवी. कूर्म बनतां सुधी सोनानो बनावबो, के जेथी वास्तु भूमिमा शल्य दोष होय तो ते टली जाय, कूर्मने पंचामृत वडे अभिषेक करीने पछी शिला उपर स्थापवो, लग्ननो समय आवे त्यारे उपर्युक्त क्रम प्रमाणे ज बधी शिलाओ प्रतिष्ठित करवी अने उपर वासक्षेप नाखीने शिलाओनी प्रतिष्ठा करवी. मध्यशिला पर कूर्म स्थापन करतां - "ॐ हाँ श्रीँ कूर्म तिष्ठ तिष्ठ देवगृहं धारय धारय स्वाहा" आ मंत्र बोली उपर वासक्षेप नाखवो, कूर्म प्रतिष्ठा-देवगृह, प्रासाद, रथशाला, गृह आदि दरेक वास्तुना निर्माणमां थवी जोइये, जेमां कूर्म प्रतिष्ठा करवी होय ते वास्तुनुं नाम मंत्र मध्ये बोलवू, कूर्म प्रतिष्ठित करी वासक्षेप कर्या पछी सौभाग्य १, सुरभि २, प्रवचन ३, कृतांजलि ४ अने गरुड ५, आ पांच मुद्राओ देखाडवी, पछी इरियावही पडिक्कमवा पूर्वक पूर्वोक्त विधि प्रमाणे संपूर्ण चैत्यवंदन करवू. आ चैत्य वंदनमा छट्ठी स्तुस्ति कह्या पछी श्री प्रतिष्ठा देवतायै करेमि काउसग्गं, अन्नत्थ० इत्यादि कहीने १ लोगस्स सागरवरगंभिरा सुधीनो काउस्सग्ग करी पारीने नमोऽर्हत् कही . "यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनं कूर्म सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥" आ स्तुति कहेवी. शेष विधि प्रथम प्रमाणे करवी. चैत्यवंदन विधि कर्या बाद अक्षतांजलि भरीने - जह सिद्धाण पइट्ठा, तिलोकचूडामणिम्मि सिद्धिपए । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥१॥ जह सग्गस्स पइट्ठा, समत्थलोयस्स मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥२॥ विष्णु संहितामां आग्नेयी दिशानो अर्थ गृहदारनो जमणो भाग, आवो कयों छे, जेम के . "पुनः कुष्टेष्टकाधानं, कुर्याद् द्वारे तु कल्पिते । द्वारस्य दक्षिणे भागे, कर्तव्या प्रथमेष्टिका ॥" ॥ १२ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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