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|| कल्याण-I कलिका. खं० २॥
| प्रतिष्ठा ।।
जह मेरुस्स पइट्ठा, दीवसमुद्दाण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥३॥ जह जंबुस्स पइट्ठा, जंबुद्दीवस्स मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥४॥ जह लवणस्स पइट्ठा, समत्थउदहीण मज्झयारम्मि । आचंदसूरियं तह, होउ इमा सुपइट्ठत्ति ॥५॥
आ मंगल गाथाओ भणी अक्षताञ्जलि कूर्म उपर नांखबी, स्नात्रकारोए अक्षतांजलि उपरांत पुष्पांजलि पण नांखवी, ते पछी कूर्म उपर वस्खाछादन करी चारे बाजुमां इंटो चणीने उपर शिला अथवा पत्थर- पाटियु ढांकी देवराबबु के जेथी कूर्म उपर शिला आदिनु दबाण न आवे.
॥ १३ ॥
॥१३॥
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