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यो
|| अष्टोत्तरी
॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
शतस्नात्र
विधिः ॥
सभास्थानमां - "ॐ मुखमण्डन्यै नमः ।"
आ बधा स्थानोमा जणावेल मंत्रोबडे पच्चीस वस्तुओनो बनेलो वासक्षेप नाखीने बधानी प्रतिष्ठा करवी. आ बधाना द्वारोनी द्वारविधिथी, | स्तंभोनी स्तंभविधिधी अने भींतोनी भित्तिविधिधी प्रतिष्ठा करवी. अने पछी आंगणामां आवी कलश प्रतिष्ठा प्रसंगे जणावेल विधिधी दिक्पालोनुं आह्वान करी शान्ति बलि देवी, अने त्यां शान्तिक पौष्टिक करवू. पोताना गुरुनो अन्न वस्त्र वडे अने पोतानी ज्ञातिनो भोजन ताम्बूल बड़े सत्कार करवो.
हाटनी प्रतिष्ठामां . ॐ श्री वाञ्छितिदायिन्यै नमः । तापसोना खूपडाओनी प्रतिष्ठामा - ॐ ह्रीं क्लू सर्वायै नमः । घासचाराना मकानमां - ॐ शों शान्तायै नमः। जलप्रपाना मकानमा- ॐ वं वरुणाय नमः । मठनी प्रतिष्ठामा - ॐ ऐं वाग्वादिन्यै नमः । धातु घडवानी शालामां - ॐ भूतधात्र्यै नमः । भोजनशालाना मकानमां - ॐ श्री अन्नपूर्णायै नमः । होम शालामां . ॐ रं अग्नये नमः ।
आ सामे लखेल मंत्र वडे ३ ३ वार वासक्षेप करीने प्रतिष्ठा करवी अने आ बधा स्थानोना द्वारो, छातो, स्तंभो, भींतोनी प्रतिष्ठा | द्वार आदिनी उक्त प्रतिष्ठा विधि प्रमाणे करवी. नीच जातिना घरोनी प्रतिष्ठा विधि अहीं जणावी नथी, केम के तेओनुं प्रतिष्ठा विधान ब्राह्मणादि विधिकारो कराबता नथी.
(२) जिनबिम्ब-परिकर प्रतिष्ठाविधिः परिकर जो जिनबिम्बनी साथे होय तो बिम्बप्रतिष्ठामां तेनी वासक्षेप मात्रथीज प्रतिष्ठा थइ जाय छे, पण परिकर जो जुद् होय तो तेनी प्रतिष्ठा पण जुदी कराय छे. परिकरनो आकार नीचे लखेल प्रकारनो होय छे.
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