________________
॥ कल्याण
कलिका.
खं० २ ॥
।। ४५४ ।।
Jain Education International
बिम्बने नीचे हाथी सिंह अने कीचना रुपकोथी युक्त सिंहासन होय छे, बीजा मत प्रमाणे सिंहासनना मध्यभागे वे हरिणोना तोरणाकारने नीचे धर्मचक्र होय छे. अने तेनी बने बाजुना भागोमां ग्रहोनी मूर्तियो होय छे. जिन बिंबना बन्ने पडखे चमरधरो, तेमनी बहार वे अंजलि हस्त मनुष्यो, बिम्बना मस्तक उपर त्रण छत्रो, तेनी बने बाजुना भागोमां जेमणे शुंडोमां सुवर्णना कलशो पकडेला छे एवा वे श्वेत हाथी, हाथीओ उपर झांझ बगाडतां पुरुषो, तेमनी उपर मालाधरो तेमनी उपर शंख बगाडनारा अने तेनी उपर कलश. उपर लख्या प्रमाणे परिकर तैयार थाय त्यारे विम्बप्रतिष्ठोचित मुहूर्त जोवरावी, भूमिशोधन, अमारी घोषणा, संघ आमंत्रण पूर्वक प्रतिष्ठा विधि प्रमाणे परिकरनी प्रतिष्ठा विधि करवी.
परिकर प्रतिष्ठा लगभग कलश प्रतिष्ठाने मलती छे. परिकरना अभिषेको जिनबिंबना स्नात्रजल वडे करवा. अभिषेक करी परिकरने कलशनी जेम सुगन्धी पदार्थों बडे पूजवो, सात धान्यो बडे बधाववो, वे आंगलियो उंची करी तर्जनी मुद्राए अने क्रूर दृष्टिए डावा हाथमां जल चुलुक भरी परिकर उपर जल आछोटवुं, अने अक्षतभृत पात्र भेट करवुं, ते पछी
"ॐ ह्रीँ श्रीँ जयन्तु जिनोपासकाः सकला भवन्तु स्वाहा । "
आ मंत्र त्रण बार भणी गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य बडे परिकरने अधिवासित करी दशियावड वस्त्र ओढाडं. ए पछी जे जिननुं परिकर होय ते जिननुं चैत्यवंदन करी ४ स्तुतिथी देववंदन करवुं त्रीजी स्तुति कह्या पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कही श्रीशान्तिनाथ आराधनार्थं करेमि काउस० बंदण० अन्नत्थ० १ लो० नमो० स्तुति श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश - मुकुटाभ्यर्चितां श्रुत देवतायै करेमि का० अन्नत्थ० १ नव० नमो० स्तुति
||४||
-
-
For Private & Personal Use Only
-
॥ अष्टोत्तरी
शतस्नात्र
विधिः ॥
।। ४५४ ।।
www.jainelibrary.org