SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ कल्याण-I कलिका. खं० २॥ ॥ मंडप प्रवेश ॥ ।। ८५ ॥ कलशमां सुवर्णजल लेइ "ॐ जीरावली पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा" आ मंत्र वडे ७ वार मंत्री मंडपमां नीचे उपर बाजुमां बधे छांटवू, अने प्रतिष्ठा गुरुए - ॐ भूरसि भूतधात्रि ! सर्वभूतहिते देवि ! भूमिशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ! आ मंत्र बोलता मंडपमा बधे वासक्षेप करी भूमिशुद्धि करवी, स्नात्रकारोए चंदनादि छांटवू, पुष्पो वेरवां, धूप उखेववो. देववन्दनादि निमित्ते ज्यां पूर्व प्रतिष्ठित पंचतीर्थी आदि स्थापवी होय त्यां सिंहासनादिके स्थापन करी ते उपर "ॐ चतुर्मुखदिव्यसिंहासनाय नमः" ए मंत्रथी गुरुए वासक्षेप करवो. । पछी ज्यां नवीन प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाओ स्थापवानी छे ते वेदी पासे जइ मुख्य प्रतिमाओना आसनस्थानो उपर सुगन्धी पदार्थो बडे स्वस्तिको अथवा समवसरणना त्रण गढो आलेखवा अने “ॐ अर्हत्पीठाय नमः' मंत्र वडे प्रतिष्ठागुरुए वासक्षेप करवो. वेदीपूजन थया पछी शुद्धपणे तैयार करावेल अने घंटाकर्णना मंत्रथी २१ अथवा ७ वार अभिमंत्रित करेली गोलनी ५ सेर सुखडी बालकोने बहेंचवी. पूर्वोक्त सर्व विधि थया पछी शुभ समयमा नवीन प्रतिमाओ मंडपमा लाववी अने वेदी उपर प्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख अने पछी बधी दिशाओमां पधराववी. प्रतिमाओ नीचे डावा भागे समूलो डाम अने थोडी थोडी नदीनी शुद्ध वालुका मूकवी, जे प्रतिमा कोइ स्थले स्थापीने पछी अंजनादि विधान करवू होय तेनी नीचे पंचरत्न अक्षतादि मूकवा. , पूर्व प्रतिष्ठित प्रतिमा तेनी आगल स्थापेल सिंहासन उपर विराजमान करवी.... प्रतिमा मंडपमा स्थापन कर्या पछी स्नात्र भणावी अने मंगलार्थ चैत्यवंदन अने शान्त्यर्थ देवताना कायोत्सर्गो करवा. चैत्यवन्दना-विधि - इर्यावही पडिकमी क्षमाश्रमणपूर्वक इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं ? कही - 1 १. ॐ ह्रीं श्रीं घंटाकर्ण नमोस्तु ते ठः ठः ठः स्वाहा । ॥८५ ।। Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy