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________________ ॥ कल्याण कलिका. | खं०२॥ श्रीशान्ति बादिवे ॥ ४२९ ॥ तालीय अर्हदभिषेकविधिः ॥ __ केतु धुमाडाना जेवा रंगनो छे, बलि अने पुष्पमाला पण एवाज वर्णनी चढावबी, भोजन अनेक जातना अन्ननु आपवू, अने दक्षिणामां | कालो कांबलो आपवो. ९ ग्रहोनी शान्ति इच्छनार माणसे उपरोक्त प्रकारे नवग्रहमंडित जिन प्रतिमा उपर अभिषेक विधि करी ग्रहोना अभिषेक पूर्वक बलि विधान, पुष्पारोपण, भोजन, दान दक्षिणा करी ग्रहोनी शांति करवी, अने पछी संधने जमाडवो, तेवी शक्ति अथवा सगवडना अभावे अपवादे पोतानो गच्छ जमाडवो, ए पण न बने तो त्यां जे कोइ साधुओ हाजर होय तेमनी ज वस्त्र, पात्र, अन्न, पानादिवडे आदरपूर्वक पूजा भक्ति करवी. ___ अभिषेक गुणगर्भित धर्मकथा - प्रशस्यमायुष्यमथो यशस्यं, जयास्पदं संपदमावहन्तम् । हेतुं सदा सौख्यपरम्पराणां, करोत्यपुण्यो न जिनाभिषेकम् ॥२३॥ प्रशंसनीय, आयुष्यदायक, यशोवर्धक, जयप्रद, संपत्तिदाता अने निरन्तर सुख परंपरानो हेतु आ जिनाभिषेक पुण्यहीनथी करी शकातो नथी. इति विहतविपत्पराक्रम, स्नपनविधि विधिमहतोऽर्हतः ।। प्रतिसमयमनुस्मरन्ति ये, सकलसुखास्पदतां ब्रजन्ति ते ॥२४॥ आ प्रमाणे विधि योग्य श्रीअर्हन्तनी स्नात्रविधि के जे विपत्तिना बलने हटावनारी छे, अने जेओ तेने हर समय याद करे छे, | तेओ सर्व सुखोनु प्रस्थान बने छे. MPA AS PAR Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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