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॥ कल्याणकलिका. खं.२॥
| जिनबिम्ब प्रवेश विधिः ॥
जोई द्रव्य भेट करे, अहींयां विधि साचवतां घणी वेला धई जवाने कारणे मुहूर्त वेलाएज स्थापना पछी मुख जोवणां करे छे.
पछी गुरु संघसहित खमासमण देइ इरियावही पडिक्कमीने ८ थोये देववंदन करे, थोय जे भगवान मूलनायक नवा स्थाप्या होय तेमनी कहेवी, बेसीने नमुत्थणंथी जयवीयराय पर्यन्त कहे, स्तवनने स्थाने मोटी शान्ति कहेवी.
ते पछी गुरु उभा थइ श्रीक्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउसग्गं अन्नत्य उससिएणं०, लोगस्स १ नो० सागरवरगंभीरा सुधीनो काउसग्ग करवो, पारीने नमोऽर्ह. कही,
“यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ आ स्तुति कही उपर आखो नोकार कहेवो. पछी भवनदेवयाए करेमि काउसग्गं अन्नत्थ०, लोगस्स १ नो काउसग्ग सागरवरगंभीरा सुधीनो पारीने नमोऽहं कही, स्तुतिःज्ञानादिगुणयुतानां, नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥२॥ उपर प्रकट नवकार आखो कहेवो.
खमासणम देइ इच्छाकारेण संदिसह क्षुद्रोपद्रव शमावणी काउसग्गं करूं इच्छं क्षुद्रोपद्रव शमावणी करेमि काउसग्गं अन्नत्थ० काउसग्ग १ नवकारनो-विध्यन्तरमा काउसग्गमां उवसग्गहर चिंतववो-पारी नमोऽहत् कही स्तुतिः -
सर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये, वैयावृत्त्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ॥३॥ कहेवी, उपर प्रकट नवकार कहेवो, ए पछी -
॥५२॥
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