________________
॥ प्रस्ता
।। कल्याणकलिका, खं. २ ॥
वना ॥
आपवां. अने तेओए पण शक्ति मुजब पहेरामणी आदि आपीने भक्ति करवी.'
विशालराजशिष्ये पोताना कल्पमां नं० ३१४ कल्पोना वर्णननो उतारो कर्यो छे. कल्प नं. ७ मां स्त्रियोने अंगे कल्प नं. २ नो शब्दार्थ लख्यो छे. नं. ८ ना कल्पमा पुखणाना प्रसंगोमां स्त्रियोने उल्लेख आप्या कर्यो छे पण तेमनी योग्यताने अंगे कंइ पण लखायुं नथी. ।
स्नात्रकारो तेमज पुंखनारी स्त्रियोने अंगे जे योग्यताना वर्णनो कल्पकारोए कयाँ छे तेमां आवतां 'अक्षतांग, अक्षतेन्द्रिय, कुलीन, धर्मबहुमानी, उपवासी' आदि विशेषणो आजना प्रतिष्ठा तंत्रवाहकोए ध्यानमा राखवा जेवां छे, ए विशेषणोने अंगे घणा प्रतिष्ठाकल्पकारो 'एकमत' छे.
६ आधुनिक प्रतिष्ठाविधानोना आधारग्रन्थोप्रतिष्ठाओ पूर्वे थती हता अने वर्तमान कालमां पण थाय छे, प्रतिष्ठासंबन्धी क्रियाविधानो पूर्वकालमां थतां हतां अने आजे थाय | छे, पण आ कार्यो करवा माटे कोइ पण प्रामाणिक ग्रन्थनो आधार ते होवो ज जोइये, पण आजे कोइ खास ग्रन्थने ज आधारे क्रिया विधानो थतां नथी. जलयात्राविधिनो आधार एक छे, तो कुंभस्थापन विधिनो आधार बीजो, ग्रह दिक्पालोनुं पूजन कोइ ग्रन्थना आधारे कराय छे तो प्रतिष्ठाविधि कोइ त्रीजा ज ग्रन्थना आधारे कराय छे. आ बधी अव्यवस्थानु खरं कारण एक एवा प्रामाणिक अने सर्वांग संपन्न ए विषयना ग्रन्थनो अभाव गणी शकाय.
आजकालनी अंजनप्रतिष्ठाओ, बिंबप्रवेशविधिओ अने अष्टोत्तरी आदि महापूजाओना आधार ग्रन्थो ४ छे. (१) उपाध्याय सकलचंद्रजीनो "प्रतिष्ठाकल्प" (२) श्रीरत्नशेखरसूरि विरचित गणाती "जलयात्रादि विधि" (३) यति कान्तिसागर
For Private & Personal Use Only
॥ ३५ ॥
Jain Education International
www.jainelibrary.org