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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ षष्टाह्निके च्यवनकल्याणकविधि ॥ ।। १४९ ॥ सुकृतकरणदक्षः पञ्चमुख्यः समस्तः, सकलदुरितनाशश्छिन्नदृष्कर्मपाशः । विमलकुलविवृद्धथै देवलोकाच्च्युतः श्री-नियतपदसमृद्धयै मानुषेऽहं सदा त्वम् ॥१॥ रत्नत्रयालङ्करणाय नित्य-मच्छायकायाय निरामयाय । निःस्वेदतानिर्मलतायुताय, नमो नमः श्रीपरमेश्वराय ॥२॥ आ कान्यो भणी - ॐ ह्रां ही हूँ हूँ ह्रौं हुः अहँ नमः हंस श्रीमदर्ह देवलोकाच्च्युत्वा मानुषत्वेऽवातरत्, हंसः हंसः हंसः श्रीपरमेश्वराय नमः स्वाहा । आ मंत्र बोली प्रतिष्ठाप्य नवीन सुन्दर जिन बिम्बने दूधथी भरेला सुवर्ण कलशमां स्थापवू, अने - ॐ हाँ ही हों य र ल व श ष स ह क्षौँ हंस अमुष्य प्राणान् इह प्राणे अमुष्य जीव इह स्थितः सर्वेन्द्रियाणि वाग्मनश्चक्षुः श्रोत्रःप्राणजिह्वामुखानि स्थापय संवौषट् वषट् स्वाहा स्वधा ।। आ मंत्र भणीने ते बिम्ब उपर वासक्षेप करवो. ए रीते बिम्बमां प्राणप्रतिष्ठा करवी. पछी ॐ ह्रीं अहँ ॐ ह्रीं-मोक्षद्वारे (ब्रह्मरंध्र उपर) ॐ ह्रीं अहँ अ आ ललाटे (ललाट उपर) ॐ ह्रीं अर्ह इ ई-दक्षिणेतरनेत्रयोः । ॐ ह्रीं अहँ उ ऊ-दक्षिणेतरकर्णयोः । ॐ ह्रीं अहँ ऋ ऋ -नासापुटयोः । ॐ ह्रीं अहँ ए ऐ-ऊर्ध्वाधो दन्तपंक्त्योः । ही अहं ओ औ-स्कन्धयोः । ॐ ह्रीं अर्ह अं - मस्तके । ।। १४९ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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