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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ षष्ठाह्निके च्यवनकल्याणक-. विधि ॥
॥ १४८ ॥
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ॐ हुः सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौँ हुः ज्ञानदर्शनचारित्रतपांसि धर्माः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
उपरना मंत्रोमा जे जे हस्तावयवोनो उल्लेख छे ते तेनो मंत्र बोलतां स्पर्श करवा पूर्वक करन्यास करवो, पछी - ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं अर्ह सः नमो हंसः नमो हंसः नमो हंसः गुरुपादुकाभ्यां नमः । ए मंत्रोद्वारा गुरुपूजन करवू. पछी - ॐ ह्रां ह्रीं नमो अहं सः धर्माचार्याय नमः । ए मंत्रद्वारा धर्माचार्य- पूजन करवू पछी - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हुः अहँ परमब्रह्मणे असिआउसाय नमः हंसः स्वाहा । ए मंत्रथी सिंहासन स्थित प्रतिमा उपर वासक्षेप बडे पूजा करवी. पछी - ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रौँ हः अर्हद्भ्यो नमः । ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं अर्हते नमः । आ मंत्र बडे वासक्षेप मंत्रीने नवीन बिंब उपर नाखवो. पछी -
ॐ परमहंसाय परमेष्ठिने हंसः हंसः हंसः हूँ हैं हाँ ह्रीं हूँ हैं हौँ हौँ हँः अर्हद्भ्यो नमः श्रीजिनबिम्ब स्थापयामीति संवौषट् ।
आ मंत्र बडे वासक्षेप मंत्री नवीन बिंबना मस्तके नाखवो अने जलमिश्रित करीने बिम्बना सर्वांगे तेनुं विलेपन करवू, तेनी आगे दुग्धभृत सुवर्ण कलश स्थापबो, अने -
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॥ १४८ ॥
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