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॥ षष्ठा
.| कल्याणकलिका. खं० २॥
लिके
च्यवनकल्याणकविधि ।
॥ १४७ ॥
आ काव्य बोलीने भुजबंध, कुंडल, सोनानो दोरो, हार, कंदोरो वगेरे यथोपलब्ध तमाम आभूषणो पहेरवां अने -“ॐ ह्रीं | अहँ यूँ हूँ इन्द्रं परिकल्पयामीति स्वाहा ।" आ मंत्र बडे अभिमंत्रित वासक्षेप प्रतिष्ठाकारकना मस्तके नाखवो, आम इन्द्रने कल्पवो.
पछी अभिमंत्रित वास हाथमा लइ - 'ॐ आँ ह्रीँ क्रों ऐं क्लौं हसौं इन्द्राणी परिकल्पयामीति स्वाहा ।' आ मंत्र भणी प्रतिष्टाकारकनी सीना मस्तके वासक्षेप करवो. ॐ ह्रीं नमो भगवति विश्वव्यापिनि हाँ हाँ हूँ हूँ ह्रौं हः सिंहासने स्वस्तिक पूरयामीति स्वाहा । आ मंत्र भणी इन्द्राणीना हाथे वेदिका उपर धवल मंगल गीत साथे पांच स्वस्तिक कराववा पछी नीचेना मंत्रोथी अंगन्यास करवो - ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताणं हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो सिद्धाणं ही वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं ह्रौं नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा ।
ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं ह्रौं पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीँ नमो ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपान् ह्रः सर्वांगं रक्ष रक्ष स्वाहा ।
अंगन्यास पछी नीचे प्रमाणे करन्यास करवो - ॐ ह्रीं अहँतो अंगुष्टाभ्यां नमः । ॐ ह्री सिद्धाः तर्जनीभ्यां नमः । ॐ हूँ आचार्या मध्यमाभ्यां नमः । ॐ हूँ ह्रौं उपाध्याया अनामिकाभ्यां नमः ।
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