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________________ ।। कल्याणकलिका. खं० २॥ ॥ दशमाह्निके अञ्जनशलाकाप्रतिष्ठाविधि ।। १९५ ।। स्थापनास्थानमन्यत्र, प्रतिष्ठास्थानतो यदि । स्थापनास्थानकं गत्वा, गुरुः सज्जीकरोत्वदः ॥१५७॥ चरा चेत् प्रतिमा बिम्ब-वामाङ्गे दर्भवालुकाम् । निवेशयेदचलायां, पञ्चरत्नादिकं तथा ॥१५८।। ततो ऽधिवासनास्थानाद्, बिम्बमानीय सोत्सवम् । शुभे लग्ने भद्रपीठे, स्थापयेद् विधिपूर्वकम् ॥१५९॥ तत्रैव समये चैत्य-मस्तके कलशं न्यसेत् । ध्वजदण्डं च विधिवत्, कुर्याच्च जिनवन्दनम् ॥१६०॥ शान्तिस्तवं स्तवस्थाने, पठित्वा दिग्बलिं क्षिपेत् । स्थापनां निश्चलां कृत्वा, स्मरणसप्तकं पठेत् ॥१६॥ शान्तित्रयं भयहर-मुपसर्गहरं तथा । स्तोत्रं समवसृत्याख्यं, तिजयपहुत्तस्तवम् ॥१६२।। मुखोद्घाटनपूर्वं च, पाभृतान्युपढौकयेत् । संघभक्तिर्मार्गणानां, दानं कार्यं यथोचितम् ॥१६३॥ स्नात्रकारोना हाथे अभिमंत्रित कंकणादिक बांधी दिक्पालो तथा ग्रहोर्नु स्मरण करीने तेमने बास पुष्पादिके पूजवा, पछी शांति मंत्रथी अभिमंत्रित बलि दिशाओमां फेंकवो, देववन्दन कर. तेमा प्रतिष्ठा देवतानो काउस्सग्ग करी तेनी स्तुति कहेवी, धूप उखेबीने बिंब उपरथी वस्त्र दूर कर्या पछी गुरुए प्रतिमाना अंगोमा मन्त्र वर्णोनो न्यास करवो अने परमेष्ठिमुद्रा करी त्रण वार जिनाह्वान करीने शासनदेवो, शासनदेवीओ, अने प्रतीहारोनुं जिननी पासे आह्वान, स्थापन, तथा संनिधापन कर, प्रतिष्ठा जो चर होय तो बिंबनी नीचे वामांगे वालुका साथे डाभ अने प्रतिष्ठा स्थिर होय तो प्रतिमा नीचे पंच रत्नादिनो न्यास करवो. नेत्रांजन-जे घृत-मधुमय होय छे तेने रुपाना कच्चोलामां भरी अभिमंत्रित करीने शुभस्थाने संभालपूर्वक राखg अने शुभ लग्न अने शुभ नवमांशक आवतां मन्त्र विधानज्ञाता प्रतिष्ठागुरुए सुवर्ण शलाका वडे प्रतिमान नेत्रोन्मीलन करवू, अने मंत्रद्वारा अंजन- स्थिरीकरण करी प्रतिमाना मस्तके वासक्षेप करवो, तेना चंदन विलिप्त जमणा काने मंत्रोपदेश करवो, तथा मुद्रा करी तेना सर्वांगनो स्पर्श | भा H ॥ १९५ ॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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