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॥ कल्याणकलिका.
श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः ।।
।। ४०३ ॥
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१९ श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेकविधिः - अभिषेकविधिः पूर्वं, कथितः शान्तिसूरिभिः । तमाश्रित्याऽभिषेकाणां, विधयो जज्ञिरेऽखिलाः ॥१७३।। पूर्वमष्टोत्तरशत-घटस्नानमजायत । 'चक्रे देवेन्द्रराजेति' काव्य घोषेण निर्मितम् ॥१७४।। तस्यानुकरणाज्जज्ञेऽष्टोत्तरस्नात्रमप्यदः । षोडशे विक्रमाब्दानां-शते केनापि निर्मितम् ॥१७५।। शान्तिस्नात्रमिदं जज्ञे, सकलचन्द्रदर्भितम् । विक्रमाब्दसप्तदश-शते लोके प्रसिद्धिभाग ।।२७६।।
अर्हदभिषेक सर्व प्रथम बादिवेताल शान्तिसूरीजीए कहेल तेना आधारे ते पछीना आचार्योए भिन्न भिन्न नामथी घणी अभिषेक विधिओ बनावेली जेमा 'चक्रे देवेन्दराजैः" आ काव्य बोलीने १०८ अभिषेक करवानी विधि प्राचिन छे. आ अष्टोत्तर शत अभिषेकना अनुकरण रूपे लगभग सोलमा सैकामा कोइए अष्टोत्तरी स्नात्रनी योजना करी, अने ते पछी विक्रमना सत्तरमा सैकामां श्रीसकलचन्द्रगणिए "शान्तिस्नात्र" नामथी प्रसिद्ध एक अभिषेक विधिनुं निर्माण कर्यु के जे विशेप प्रसिद्धिमा आन्यु छे. उपकरण भद्रासन(प्रणाल युक्त बाजोट)
चामयुगल परिकरयुत जिनबिंब १ चंद्रवो भद्रासनोपरि
त्रांबा कुंडी २ वस्त्रमंडप वेदीसहित छत्र त्रय बिंबोपरि
घंट १ शंख १ चंदन मूठो १
कांसानी थाली १ झालर १
अगर तोला ५ थाली ७ कपूर तोला ५
बाजिंत्र समूह
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वेलण १
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