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॥ कल्याणकलिका.
खं० २ ।।
।। १५१ ।।
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ॐ हाँ हीँ हूँ हूँ ह्रीँ हः असिआउसाय ह्रीँ नमः स्वाहा” अथवा
ॐ ह्रीँ परमहंसाय परमपरमेष्टिने परमहंस हं हाँ हुँ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रः परमेष्ठिने नमः स्वाहा । आ बे कर्णोपदेश मंत्रो पैकीना एक बड़े कर्णोपदेश करी बिम्बना मस्तके वासक्षेप करवो अने -
ॐ ऐं क्लीं ह्सौ वद वद, वाग्वादिनि भगवति ह्रीँ नमः । ॐ नमो अरुहंताणं, धातृभ्योऽभीप्सितफलदेभ्यः स्वाहा ॥ | १ || एप्रमाणे आशीर्वाद देवो, त्यां माता स्वप्न देखे तेना नामना नीचेना श्लोको बोलवा -
गजो वृषो हरिः साभि षेकश्रीः स्रक् शशी रविः । महाध्वजः पूर्णकुम्भः, पद्मसरः सरित्पतिः || १ || विमानं रत्नपुञ्जश्व, निर्धूमाग्निरिति क्रमात् । ददर्श स्वामिनी स्वप्नान् मुखे प्रविशतस्तदा ||२||
लोको बोल्या पछी ॐ ह्रीँ स्वामिनिस्वप्नदर्शनमिति स्वाहा । आ मंत्र भणवो.
पछी स्नात्रकारे संपूर्ण चैत्यवंदन करवुं श्रावक श्रीपार्श्वनाथनो कलश कहेवा पूर्वक कुसुमांजलि करी आठ स्तुतिओ वडे देववंदन करे. आ प्रमाणे च्यवन कल्याणकनी विधि करवी.
इति च्यवन कल्याणक विधि ।
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॥ षष्ठा
ह्निके
च्यवनकल्याणक
विधि ॥
।। १५१ ।।
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