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॥ नवांग
॥ कल्याण- कलिका. खं० २ ॥
वेदीरचना
अने यवदारक वपन ॥
श
आ श्लोक ३ बार बोलबो-ते पछी दीपक सहित सधवा स्त्री जिनप्रतिमाने त्रण प्रदक्षिणा दइने कुंभनी जोडे पूर्व करेल कंकु अथवा चंदन-केसरना स्वस्तिक उपर फाणसनी अन्दर दीपक स्थापन करे अने ते पछी कुंभ अने दीपकनी आगळ आरती मंगल दीवो करे.
(२) कुंभ स्थापनविधि प्राचीनआजकाल आपणामां प्रतिष्ठा पूजा आदिना प्रसंगोमां विधिकारोमां कुंभस्थापननी जे विधि प्रचलित छे, ते घणी अर्वाचीन छे. एटलं ज नहिं पण घणा मतभेदो पण तेमा जोवामां आवे छे, अमो आ स्थले 'शान्तिपर्वविधि' मां लखेल एक जुनामा जुनी विधि भ आलेखीए छीए. आशा छे के प्राचीन वस्तुना श्रद्धालु क्रियाकारको आनो उपयोग करशे.
चन्द्रबलादियुक्त शुभवेलामां जेनां माता-पिता, सासू-ससरो अने भर्तार जीवित होय एवी निःशल्य निर्दोष साधर्मिक स्त्रीने पोताना घरे तेडी तेनो तांबूल आदिथी यथाशक्ति उपचार करीने शुभ अने साव नवो पाका माटीनो घडो लइ चावल आदिना चूर्णवडे धोली शुभ स्थानथी लावेल जलथी भरवो. अंदर सोपारी अने सुवर्ण नाखी कंठे सुगंधी पुष्पमाला पहेरावी, मुखे ४ नागरवेलानां पान चारे दिशामां स्थापी, कलशनुं मुख ढांकी ते स्त्रीने उपडाववो, कलश उपर 'चन्द्रवो, रखावबो, पछी पंचशब्द वाजिंत्रो वागतां साथे शुभ स्त्रिओ द्वारा गीत गवडावतां बच्चे बच्चे शंख, मृदंग, ढोल, आदि वगाडनाराओने दान आपती सुन्दर वेशे शोभती ते कलश उपाडनारी स्त्री धामधूम पूर्वक देवालयना बाह्य द्वार पासे आवे, त्यां द्वारनी भीते चन्दन केसरना हाथा दइने विधि पूर्वक देवालयमा प्रवेश करे अने गहुली उपर माची आदि राखीने ते उपर कलशनी स्थापना करे. कलशनी स्थापना थई एटले मुहूर्त सधायु एम समजवू.'
नवांग वेदीरचना अने यववारक वपन । 1 १. आ कुंभस्थापन विधि श्रीजिनप्रभसूरिजीए "शान्तिपर्वविधि' मां लखेल छे.
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