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________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ।। ३२८ ॥ Jain Education International ए पछी मुखोद्घाटन करीने नीचेना मंत्रे अभिमंत्रित करीने शान्तिबलिनो प्रक्षेप करवो. “ॐ नमो भगवते अर्हते शान्तिनाथस्वामिने सकलातिशेषमहासंपत्समन्विताय त्रैलोक्यपूजिताय नमो नमः शान्तिदेवाय सर्वामरसुसमूहस्वामिसंपूजिताय भुवनपालनोद्यताय सर्वदुरितविनाशनाय सर्वाऽशिवप्रशमनाय सर्वदुष्टग्रहभूतपिशाचमारिशाकिनीप्रमथनाय नमो भगवति जये विजये अजिते अपराजिते जयन्ति जयावहे सर्वसंघस्य भद्रकल्याणमंगलप्रदे साधूनां श्रीशान्तितुष्टिपुष्टिदे स्वस्तिदे भव्यानां सिद्धिवृद्धिनिर्वृतिनिर्वाणजनने सत्त्वानामभयप्रदानरते भक्तानां शुभावहे सम्यग्दृष्टीनां धृतिरतिमतिबुद्धिप्रदानोद्यते जिनशासनरतानां श्रीसम्पत्कीर्तियशोवर्धनि रोगजलज्वलनविषविषधरदुष्ठज्वरव्यन्तरराक्षसरिपुमारिचौरईतिश्वापदोपसर्गादिभयेभ्यो रक्ष रक्ष शिवं कुरु कुरु शान्तिं कुरु कुरु तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु ॐ नमो नमः हूँ हूँ क्षः ह्रीँ फट् फट् स्वाहा || " ए पछी संघादिपूजा, दीनानाथादिदान, बंदिबन्धमोक्ष, आदि प्रसंगोचित कार्यो करवां के जे शासनोन्नतिनां अंग बने, स्वजनवर्ग अने साधर्मिकवर्गने विषे विशेष वात्सल्य देखाडवुं. प्रतिष्ठा पछी अष्टाह्निक-महोत्सव करवो, देश, काल के कार्यवशात् तेम न बनी शके तो त्रण दिवसो तो अवश्य उत्सवमां व्यतीत करवा. आवश्यककार्य होय तो प्रतिष्ठाना दिवसे, अन्यथा त्रीजा दिवसे विशेषपूजा करी, लोकपालोने पूजी, सोहागण स्त्रीयोनां मंगलगीतो पूर्वक ‘ॐ हूँ यूँ क्ष्वीँ सः’ आ मंत्रना उच्चार पूर्वक कंकणो छोडबां. ते पछी नन्द्यावर्तनी पासे जइ प्रथम विसर्जनार्थक अर्घ आपवो, पछी पूर्वाक्तन्याये भोगागो संहरीने देवने विषे जोडी संहार मुद्राए “स्वस्थानं गच्छ गच्छ’” आ मंत्रवडे पूजाने खेंची मस्तके चढावी पूरक द्वारा - “क्षमस्व " आम बोलीने तेनुं हृदयकमलमां विसर्जन For Private & Personal Use Only ॥ कूर्म प्रतिष्ठा ॥ ।। ३२८ ।। www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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