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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २॥ । प्रस्तावना ॥ ॥३॥ कल्याण कलिकानी प्रस्तावना नामप्रदान लगभग २५ वर्षथी शिल्प, ज्योतिष अने प्रतिष्ठाविधिनुं मार्गदर्शक पुस्तक लखबानी मित्रो तथा भाविकोनी प्रेरणा हती, पण अन्यान्य कार्योने लीधे ए विषयोमां बहु लक्ष जतुं न हतुं. चालु कार्योनो भार ओछो थतां थोडा वर्षो उपर ध्यान खेंचीने थोडं थोडं लखवा मांडयुं, ज्योतिष तथा शिल्पना केटलांक प्रकरणो हिन्दीमां लख्यां पण खरां, परन्तु ए बंने विषयो एटला विस्तृत अने साहित्यसंपन्न छे के तेमां शुं लेबु अने शुं छोडलु ए एक समस्या थइ पडी, शारीरिक प्रकृति प्राय अस्वस्थ, आंखोमां मोतीयानी शरुआत अने अन्यान्य प्रवृत्तिओना कारणे अवकाशनी अल्पता, वली निजस्वभावनी विस्ताररुचिता इत्यादि बातोनो विचार करतां शिल्प अने ज्योतिषना स्वतन्त्र ग्रन्थोना निर्माणनी भावना कुंठित थइ गइ, छतां ए विषयोमा अत्यावश्यक विषयो उपर मुद्दासर लखबानो निर्णय अफर रह्यो.ए विषयमा टांचणो करवान चालु कर्यु अने प्रथम शिल्पना केटलांक आवश्यकीय प्रकरणो लखी नाख्यां अने शिल्पसंहिताओमां ज्योतिषनो विषय पण अवश्य होय ज छे एटले शिल्पना ज अनुसंधान रूपे धारणागति अने मुहुर्तलक्षण नामना बे परिच्छेदो लखीने ते साथे जोडी दीधा. हवे मुद्रा विषयक एक ज एवो परिच्छेद रह्यो हतो के जेनो उपयोग विधिविधानोमां थतो होवा छतां विधिरूपे तेनुं विधिखंडमां स्थान न हतुं,तेथी मुद्रा परिच्छेदने ज्योतिषना अंतमां आपिने एकंदर १७ परिच्छेदोनो प्रथम भाग पूरो कर्यो, पण आ संदर्भy नाम शुं आपQ एनो कोइ मार्ग जड्यो नहि. शिल्प विषयक नाम करण करवामां आवे तो ज्योतिषनो विषय अलक्षित रही जाय जे विस्तारमा शिल्पनी 1 ॥ ३ ॥ स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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