SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ कल्याण IN प्रतिष्ठामां सरखं जाणवू. जे देवीओ अप्रसिद्ध होवाथी तेनो कल्प जणातो न होय अथवा गुरुना उपदेशना अभावयी तेना नामनो मंत्र | "] न कहेलो होय त्यां ते देवीओनी प्रतिष्ठा अम्बा देवी के चण्डी देवी के त्रिपुरा देवीना मंत्र वडे करवी. कलिका. अहीं देवी प्रतिष्ठामा शासनदेवी, गच्छदेवी, कुलदेवी, नगरदेवी, भुवनदेवी, क्षेत्रदेवी, अने दुर्गा देवी, ए बधी देवीओनो प्रतिष्ठाविधि एक ज छे, ॥ इति देवीप्रतिष्ठाविधिः ।। ।। २८३ ।। || विविधवस्त्वधिवासना ॥ १४ विविधवस्त्वधिवासना - नानावस्तुगणस्याधि-वासनाविधिरल्पकः । उद्धृत्याचारसूर्याख्य-ग्रन्थादत्र निवेशितः ॥१८१।। अनेक पदार्थोनी थोडीक अधिवासना विधि आचारदिनकरथी उद्धरीने परिच्छेदमा दाखल करेल छे. कोइ पण सजीव अजीव वस्तुनो स्वीकार करतां, अमुक मंत्र पूर्वक वासक्षेप द्वारा, अभिषेक द्वारा अथवा हस्तन्यास द्वारा तेने पवित्र करवी तेनुं नाम अधिवासना छे. जे जे पदार्थनी प्रतिष्ठा विहित छे, ते सर्वनी अधिवासना अवश्य विहित छे ज, पण जे पदार्थोनी प्रतिष्ठा थती नथी तेमनी पण अधिवासना थाय छे. विधिकारोनी ज्ञानवृद्धि निमित्ते अमो नीचे केटलाक एवा पदार्थोनी अधिवासना विधि आपीये छीए के जेमनी प्रतिष्ठा विहित नथी छतां अधिवासना विधेय छे. ॥ २८३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy