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काशन
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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
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॥ देवी | प्रतिष्ठा ॥
॥ २८२
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सौषधिमयं नीरं, नीरं सद्गुणसंयुतम् भगवत्यभिषेकेऽस्मिन्नुपयुक्तं श्रियेऽस्तु नः ॥५॥ आ श्लोक बोलीने अभिषेक करे, त्यार बाद जटामांसी- चूर्ण लेइने - सुगन्धं रोगशमनं, सौभाग्यगुणकारणम् । इह प्रशस्तं मांस्यास्तु, मार्जनं हन्तु दुष्कृतम् ॥६॥ आ श्लोक बोलीने मार्जन करे, पछी चन्दननु चूर्ण लेइने - शीतलं शुभ्रममलं, धूततापरजोहरम् । निहन्तु सर्वप्रत्यूह, चन्दनेनाङ्गमार्जनम् ॥७॥ आ श्लोक बोली अंगे मार्जन करे, पछी केसर- चूर्ण लेइने - काश्मीरजन्मजैचूर्णैः, स्वभावेन सुगन्धिभिः । प्रमार्जयाम्यहं देव्याः, प्रतिमां विघ्नहानये ॥८॥
आ प्रमाणे पांच स्नात्र अने त्रण मार्जन करीने देवीनी पासे स्त्रीओने उचित सर्व वस्त्र, भूषण, गंध, माला अने मंडल करनार वस्तुओ तथा नैवेद्य पण बहु प्रकारनां मूके. त्यार बाद प्रतिष्ठा पूर्ण थाय त्यारे मंडलनुं विसर्जन नंद्यावर्तना विसर्जननी जेम करे. त्यार पछी कन्यानु पूजन, गुरुओने दान, महोत्सव अने संघ-पूजा महाप्रतिष्ठानी पेठे करे.
आ प्रतिष्ठा प्रासाद देवी, संप्रदाय देवी अने कुलदेवी त्रणेनी जाणवी. तेनुं पूजन. गुरु, आगम के कुलाचारथी जाणवू, ग्रन्थ विस्तारना भयथी अने आगम प्रकट करवा योग्य नहिं होवाथी अहीं बताव्युं नथी.. ___ ए संबन्धे कहेवामां आव्युं छे के-आ आगमनुं रहस्य छे, अने ते प्रयत्नथी गुप्त राखq. कारण के गुप्त राखवाधी सिद्धि थाय छे, अने प्रकट करवाथी सिद्धिनो संशय छे.
तथा सर्व देवोनी प्रतिष्ठा ते ते कल्पमा कहेला अथवा गुरुए उपदेशेला ते ते देवीना मंत्र वडे करवी. बाकीचें वर्षा कार्य सर्व देवीनी
॥ २८२ ।।
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