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॥ कल्याण
|| जलयात्रा
कलिका.
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विधि ॥
खं० २॥
॥ ८८ ॥
कलश भणवापूर्वक स्नात्रपूजा भणाववी. स्नात्र करतां बनी शके तो इन्द्रमाला आदिनो चढावो करी चढावो लेनारना हाथे वास-पुष्पधूप-नैवेद्य वडे जिनपूजा कराववी, ते पछी प्रतिमा आगल ग्रहनो पाटलो मूकीने -
ॐ नमः सूर्याय स्वाहा, ॐ नमः सोमाय स्वाहा, ॐ नमो मंगलाय स्वाहा, ॐ नमो बुधाय स्वाहा, ॐ नमो बृहस्पतये स्वाहा, ॐ नमः शुक्राय स्वाहा, ॐ नमः शनैश्वराय स्वाहा, ॐ नमो राहवे स्वाहा, ॐ नमः केतवे स्वाहा, ___ आ प्रमाणे प्रत्येक ग्रहनो नाम-मंत्र बोली ते ते ग्रहना स्थाने चन्दन-पुष्पादि द्रव्यो चढाववां.
एज रीते दिक्पालोना पाटला उपर -
ॐ नम इन्द्राय स्वाहा, ॐ नमोऽग्नये स्वाहा, ॐ नमो यमाय स्वाहा, ॐ नमो निर्ऋतये स्वाहा, ॐ नमो वरुणाय स्वाहा, ॐ नमो वायवे स्वाहा, ॐ नमः कुबेराय स्वाहा, ॐ नमः ईशानाय स्वाहा, ॐ नमो नागाय स्वाहा, ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा.
आ प्रमाणे दिक्पालोना नाम-मंत्रो बोली, ते ते पदविभाग उपर द्रव्यो चढावबां अने पाटलाओ उपर अनुक्रमे लाल अने पीत वस्त्र ओढाडवां.
ग्रहो दिक्पालोने पूजीने सिद्धचक्रना मंडल उपर - ॐ ज्ञानाय नमः, ॐ दर्शनाय नमः, ॐ चारित्राय नमः ।
आम बोली ते ते पदोनुं केसर चन्दन वडे पूजन करवू, पछी पूर्वादि दिशाओमां दिशापालोना आह्वान पूर्वक बलिबाकुल उछालीने आरती मार्गलिक दीपक उतारवां. पछी चैत्यवंदन करी, नमुत्थुणं०, अरिहंतचेइयाणं, बंद०, अन्नत्थ०, १ नवकारनो का०, पारी नमोऽर्हत्, स्तुतिः -
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