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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
॥ श्री पादलिप्तरिप्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥
गेविज्जगकप्पाणं, सुपइट्ठा वण्णिया जहा समए । आचन्दसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥३८॥ जह मेरुस्स पइट्ठा, असेससेलाण मज्झयारम्मि । आचंदरियं तह, होइ इमा सुपइट्टत्ति ॥३९॥ कुलपब्बयाण वक्खारवट्टवेयट्टदीहियाणं च । कूडाण जमग-कंचण-चित्त-विचित्ताइयाणं च ॥४०॥ अञ्जणग-रुयग-कुण्डल-माणुस-इसुयारमाइयाणं च । सेलाण जह पइट्ठा, तह एसा होइ सुपइट्ठा ॥४१॥ जह लवणस्स पइट्ठा, असेसजलहीण मज्झयारम्मि । आचन्दसूरियं तह, होइ इमा सुप्पइट्ठत्ति ॥४२॥ कुंडाण दहाणं तह, महानईणं व जह य सुपइट्ठा । आकालिगी तहेसा, वि होउ निच्चं तु सुपइट्ठा ॥४३॥ जम्बुद्दीवाईणं, दीवसमुद्दाण सबकालंमि । जह एयाण पइट्ठा, सुपइट्ठा, होउ तह एसा ॥४४॥ धम्माधम्मागासत्थि-कायमइयस्स सब्बलोयस्स । जह सासया पइट्ठा, एसावि तहेब सुपइट्ठा ॥४५।। पंचण्ह वि सुपइट्ठा, परमेट्ठीणं जहा सुए भणिया । नियमा अणाइणिहणा, तह एसा होउ सुपइट्ठा ॥४६॥ तह पवयणस्स गम-भंग-हेउ नयनीइकालकलियस्स । जह एयस्स पइट्ठा, निच्चा तह होउ एसा वि ॥४७॥ तह संघ-नराहिब-जणवयाण रज्जस्स तहय ठाणस्स । गोट्ठिए सव्वकालंपि, सासया होउ सुपइट्ठा ॥४८॥ इय एसा सुपइट्ठा, गुरुदेवजईहिं तहय भविएहिं । निउणं पुट्ठा सोण, चेव कप्पट्ठिआ होइ ॥४९॥ सोउं मंगलसद, सउणं ति जहेब इट्ठसिद्धित्ति । एत्थं पि तहा सम्म, नायब्वं बुद्धिमतेहिं ॥५०॥ रायाबलेणं बट्टइ, जसेण धवलेइ सयलदिसिभाए । पुण्णं वडइ विउलं, सुप्पइट्ठा जस्स देसम्मि ॥५१॥ उवहणइ रोगमारी, दुभिक्खं हणइ कुणइ सुहभावे । भावेण कीरमाणा, सुपइट्टा, सयललोयस्स ॥५२॥
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