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: || कल्याण
कलिका. खं०२॥
॥ नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥
प्रतिष्ठानिमित्तक औषधि वाटवानु, पुंखणां करवानु, अंजन तैयार करवा, नैवेद्य रांधवानु, इत्यादि कार्यो आ स्त्रियो पासे कराववां | अने प्रतिष्ठा करावनारे कांचली, कापडं, प्रभावना आदि आपीने आ स्त्रियोनो सत्कार करवो.
(९) स्नात्रकारो प्रतिष्ठाकल्पकारोए 'स्नात्रकारो' अथवा प्रतिष्ठाकार्यना सूत्रधारोनुं पोताना ग्रंथोमा वर्णन कर्यु छे. जेनो सार नीचे प्रमाणे छ :
आचार्य पादलिप्तसूरिजीए १ शिल्पी, २ इन्द्र अने ३ आचार्य ए त्रणेने प्रतिष्ठाना सूत्रधार तरीके मानीने एमना लक्षणो जणान्यां छे. (१) शिल्पी -
शिल्पीना वर्णनमा पादलिप्तसूरि कहे छे - 'ते त्रणमा पहेलो शिल्पी सर्वाङ्गसुन्दर, क्षमाशील, नम्र, सरल, सत्यभाषी, शौचसंपन्न, मदिरामांसादि अभक्ष्य खान पाननो त्यागी, कृतज्ञ, विनयी, शिल्पनी क्रियाओमां प्रवीण, शिल्पशास्त्रनो ज्ञाता, चतुर, धैर्यवान, निर्मलात्मा, शिल्पिसमाजमां अग्रेसर, मोहादि आन्तर ६ शत्रुओने जीतनार, स्थापत्यना कार्योमा सिद्धहस्त अने स्थितप्रज्ञ होवो जोइये. (२) इन्द्र -
इन्द्रनी योग्यतानुं वर्णन पादलिप्तसूरिजीए कयुं छे के -
“इन्द्र पण उत्तम जातिकुलवालो, युवावस्थावालो मनोहर शरीरधारी, कृतज्ञ, रुपलावण्यादिगुणोनो आधार, सर्वलोकप्रिय, सर्वशुभलक्षणसंपन्न, देवगुरुभक्त, धर्मश्रद्धालु, सर्वप्रकारे व्यसनमुक्त, सदाचारी, पंचअणुव्रतादि गुणधारक, गंभीरप्रकृतिनो श्वेतवस्त्रधारी, अंगे चन्दनादिना विलेपनवालो, मस्तके मालतीना पुष्पोनी रचनावालो, सुवर्णमय कंकणादिके भूषित, उरःस्थलमा सुन्दर हारे करी शोभित अने स्थापत्यकलानो ज्ञाता होवो जोइये."
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