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________________ पादलिप्तसूरिजी कहे छ की शोभित, पंचाचारपालक I ॥ कल्याणकलिका. | खं० २॥ YO || नव्य | प्रतिष्ठा सर्वतोभद्र अ पद्धतिः ॥ ।। ७७ ॥ सत्रा का शल (३) आचार्य - | प्रतिष्ठाकर्ता आचार्यना संबन्धमां पादलिप्तसूरिजी कहे छ के - 'प्रतिष्ठाचार्य आर्यदेशमा जन्मेल, हलुकर्मी, ब्रह्मचर्यादि गुणगणे करी शोभित, पंचाचारपालक, राजादिकनो अद्रोही, आगमाभ्यासी, | तत्त्वज्ञानी, भूमि तथा गृहवास्तुना लक्षणोनो ज्ञाता, दीक्षाविधिमां कुशल, सूत्रपातनादिना ज्ञानमां पारंगत, सर्वतोभद्र आदि मण्डलोनी रचना करनार, अतुलप्रभावी, अप्रमादी, प्रियभाषी, दीनदुःखीनी दया करनार, सरलस्वभावी अने सर्वगुणसंपन्न होवो जोईये.' उपरना निरूपणथी जणाय छे के पादलिप्ताचार्यना समय सुधी प्रतिष्ठाकार्यमां शिल्पी, इन्द्र अने आचार्यनी ज प्रधानता हती, पण ते पछीना समयमां शिल्पीनुं महत्त्व घटी गयुं अने इन्द्रनो अधिकार पण लगभग भूलाई गयो अने तेना स्थाने ४ स्नात्रकारो आगळ आव्या. श्रीचन्द्रसूरिजीए स्नात्रकारोना लक्षणो जणान्यां छे - "स्नपनकाराश्च समुद्राः, सकंकणाः, अक्षताङ्गाः, दक्षाः, अक्षतेन्द्रियाः, कृतकवचरक्षाः, अखंडितोज्ज्वलवेषाः, उपोषिताः, धर्मबहुमानिनः, कुलीनाश्चत्वारः करणीयाः" स्नपनकारो मुद्रिकाकंकणसहित, अक्षतशरीर, प्रवीण, अखण्डेन्द्रिय, मंत्रकवचथी रक्षित, अखण्ड अने उज्ज्वलवेषधारी, उपवासी, धर्मनुं बहुमान करनारा अने कुलवान एवा ४ करवा. वर्धमानसूरिजीए स्नात्रकारो माटे - "नीरोग, सौम्य, स्नात्रविधिना जाणकार," ए विशेषणो लख्यां छे. ___ गुणरत्नसूरि अने विशालराजशिष्य आ स्नात्रकारोने अंगे बीजी वातोमां तो एकमत छे, पण ब्रह्मचर्यनी बाबतमां जुदा पडे छे. For Private & Personal Use Only स याला ।। ७७॥ Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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