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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। नव्य प्रतिष्ठा पद्धतिः ॥ ।। ७८ ।। गुणरत्नसूरि स्नात्रकारोने "तदिनब्रह्मचारिणः" एटले 'ते दिवसे ब्रह्मचर्यपालनार' विशेषण आपे छे. ज्यारे विशालराजशिष्य "जघन्यतोऽपि ८ दिनब्रह्मचचारिणः" अर्थात् 'ओछामा ओछु आठ दिवस सुधी ब्रह्मचर्य राखनार' जणावे छे. ___गमे तेओनो गमे ते मत होय पण एटलुं तो निश्चित छे के प्रतिष्ठानी विधिमां काम करनारा स्नात्रकारो सदाचारी, सुशील, निर्लोभी, धर्मप्रेमी, पंचेन्द्रियपूर्ण, अक्षत-अंगोपांगवाला, अने उत्सवना समय दर्मियान तो ब्रह्मचर्य पालनारा होवा ज जोइये. स्नात्रकारोए पोतानी प्रामाणिकतामां संदेह उत्पन्न थाय एवी कोई पण प्रवृत्ति न करवी जोइये. नकरो निछरावल जे कंइ कोइने अपावq होय ते प्रतिष्ठा करावनार गृहस्थना हाथे परभारु अपाववं, पण पोते आवी प्रवृत्तिओमां न पडg. (१०) अमारी घोषणा प्रतिष्ठा उत्सवना समय दर्मियान अमारी घोषणा अर्थात् 'हिंसानिषेध'नी उद्घोषणा कराववी जोइये. जो राजा जैन धर्मनो अनुयायी होय तो तेनी मारफत आखा देशमा 'अमारी' जाहेर कराववी. जो तेम न बनी शके तो त्या प्रतिष्ठा थवानी होय ते गाम वा नगरमां | ज तेम करावयु, कदापि उत्सवना सर्व दिवसोमां हिंसा न रोकी शकाय तो छेवटे प्रतिष्ठाना खास दिवसे तो राजा, राज्याधिकारी के | गामधणीने प्रार्थना करीने अमारीनी घोषणा कराववी ज जोइये. कोई पण उपाये देश, मंडल के नगरमा एक दिवसने माटे पण 'अमारी' नी घोषणा न करावी शकाय तो छेवटे स्थानिक जनसंघे तो आठ या दश दिवस उत्सव चाले त्यां सुधीने माटे पोताना समाजमां 'आरंभनिषेध' नी घोषणा कराववी ज जोइये कमठा कारवार बन्ध कराववाथी घणा मनुष्यो उत्सवना कार्योमां भाग लेशे अने साथे ज सांसारिक कार्यनिमित्तक हिंसाआरंभो ओछा थशे. ॥ ७८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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