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॥ कल्याणकलिका.
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परिच्छेद २. संक्षिप्त वास्तु पूजा विधिः
|| संक्षिप्त चैत्यकर्मसमारम्भे, प्रवेशसमयेऽपि च । वास्तुपूजा यथाशक्ति, विधेया शान्तिमिच्छता ॥८॥
वास्तुपूजा। "चैत्यना कामनो आरंभ करतां अने तेमा प्रवेश करवाना (प्रतिष्ठाना) समयमा शान्तिना इच्छुके शक्त्यनुसार 'वास्तु पूजा करवी." वास्तुभूमिर्नु पूर्वोक्त प्रकारे संशोधन करी, प्रासाद अथवा गृहना परिमाणानुसार तेने पथ्थरो अने माटी वडे उंची लेइ, दिशाओ निश्चित करीने शिलान्यास करती वखते प्रथम त्यां वास्तु मण्डल आलेखी वास्तु पूजा करवी. मंडलना कया पदमां कया देवनो वास छे. ते कोष्ठकोमा | आपेल नामो उपरथी निर्णय कर्या पछी पूजानो प्रारंभ करचो. पूजानो प्रारंभ कया पदथी करवो मे विषयमा शिल्पशास्त्रो अकमत नथी. घणा ग्रन्थकारो ब्रह्मा, तेनी परिधिना मरीचि आदि ४, अने आप, आपवत्सादि ८, आ १२ देवो अने अन्तमां ईशादि ३२ प्राकारगत | देवो; आ क्रमथी पूजा विधान लखे छे. ज्यारे केटलाक ग्रन्थकारो अथी विपरीत ईश आदि ३२ देवो, अने ब्रह्मा; आ क्रमथी पूजा | प्रारंभ करवानुं लखे छे. 'चरकी' आदि पदबाह्यस्थित देवीओनी पूजा सर्वना मते पाछळथी करवानी छे. पूजा बलि द्रव्यो, प्रत्येक पदस्थित तेमज पदबाह्य देवोने माटे भिन्न भिन्न विहित छे, छतां सर्व द्रव्योनी प्राप्ति न थतां पुष्प, अक्षत, सुगन्ध, धूप, दीप अने शुद्ध पक्काननी बलिनुं पण पूजामां विधान कर्यु छे. निवार्णकलिकाकारे "दुर्वादध्यक्षतादि", आ पाठमां आदि शब्द वापर्यो छे. अटले पुष्प, धूप, | दीप, फल, मेवो, विगेरे यथोपलब्ध द्रव्योनो पूजामा उपयोग करवो, एक पदमां वे देवो होय तो प्रत्येकनो नाम मंत्र बोली, तेनां उपहार Tale द्रव्यो चढाववां, अकथी अधिक पदोमां अक देव होय तो प्रत्येक पदमां ते देवनो नाम मंत्र बोलीने पूजापो चढाववो, पूजानो प्रारंभ | ईशान कोणथी करीने प्रथम 'ईश' आदि ८ पूर्व दिशामां, पावकादि ८ दक्षिण दिशामां, पित्रादि ८ पश्चिम दिशामा अने वायु आदि | ८ उत्तरमां; आम बाह्य पदगत ३२ देवोनी पूजा करवी, ते पछी आप, आपवत्सादि ईशानादि अभ्यन्तर कोणगत ८, मरीचि-विवस्वान् |
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