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________________ S न || नवमा ॥ कल्याण कलिका. खं० २॥ जाहिके दीक्षा कल्याणक- अधिवासना विधि ॥ ॥ १८७॥ ग्रहानाय तेभ्यश्च-बलिभाण्डोपढौकनम् । विधाय तोरणोपेतां, वरां चतुरिकां न्यसेत् ।।१३३।। तत्र भद्रासनं न्यस्य, प्रतिमामुपवेशयेत् । पार्श्वे स्वर्णघटं न्यस्य, न्यसेद्दीपचतुष्टयम् ॥१३४।। बलिपात्राणि संढौक्य, ततः कोणचतुष्टये । चतुरो घटकान् श्वेतान्, स्थापयेत् कङ्कणान्वितान् ॥१३५॥ ततोऽधिरोपयेद् वस्त्रं, वासितं वासचन्दनैः । मन्त्रपूर्वं ततो भोग-सामग्रीमुपढौकयेत् ॥१३६।। राज्यारोहसमारोहः, कर्तव्यस्तिलकादिकः । दीक्षाकल्याणकं पश्चा-द्यथायुक्ति प्रदर्शयेत् ॥१३७।। चैत्यवन्दनमाधाय, ततोऽधिवासनादिकाः । स्मर्तव्या देवताः कायो-त्सर्ग-स्तुतिकदम्बकैः ॥१३८॥ हवे प्रथम जिनने निशाले मोकलवानो उत्सव करवो, त्यां निशालिआ बालको माटे अनेक प्रकारनी सुखडी तथा पाटी, पुस्तकादि भणबाना उपकरणो साथे लेवां, अने छात्रोने वहेंचवां, छोकराओने गोल धाणा आदि आप_.. जिननी यौवनावस्था कल्पीने लोकेषणाना ज्ञाता विधिकारे लोकरीति प्रमाणे विवाह-मंगलनु निदर्शन करावg, विद्वान् स्नात्रकार श्रावके पोताना डाबा हाथ बडे जिननो जमणो हाथ पकडीने सुखड केसरना घोल वडे जिनना सर्वांगे पूजन करवू. गुरुए धेनु, पद्म अने अंजलि, ए त्रण मुद्राओ देखाडवी, अने अधिवासना मंत्रे करी कंकणो मंत्रीने बधी नव्य जिन प्रतिमाओना जमणा हाथे १-१ कंकण बांधवू. मुक्ताशुक्ति मुद्रा देखाडी चक्रमुद्राए मस्तक, बे स्कन्ध, अने बे जानुनो स्पर्श करबो तथा (श्रावके) धूप उखेवबो अने गुरुए परमेष्ठिमुद्राए जिन- आह्वान करवू. गुरुए त्रण वार अधिवासना मंत्र वडे अधिवासना करी बिंबना मस्तके वासक्षेप करवो, दशाओ सहित अखंड वस्त्रने धूप वासादिके अभिवासित करी ओढाड, स्नात्रकारे ते पछी सात धान्य वडे प्रतिमाने स्नान कराव. ४ अथवा ८ स्वीओए सुवर्ण- दान आपवा पूर्वक पोखणुं करवू, स्नात्रकारोए जिनने आगे उत्तमोत्तम फल-नैवेद्यादि भोग सामग्री ढोबी, अने प्रियंगु, | || १८७ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only Www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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