________________
॥ कल्याण-I कलिका. खं० २ ॥
॥ प्रस्तावना ।।
का
॥ ४८ ।।
उ० आसननो अर्थ बेसवानुं 'स्थान' एज खरो छे, शिल्पमां देवताने जे बेसवानुं स्थान होय तेने माटे 'आसन' शब्द नो प्रयोग थाय छ, प्रतिमा बेठी होय के उभी पण एने बेसाडवानुं अथवा उभी स्थापवानुं जे स्थान होय छे ते आसन-सिंहासन आदि नामोथी
ओलखाय छे. 'आसन' नो 'बेसबुं' ए अर्थ करवामां आवे तो 'उभी' प्रतिमाने माटे वांधो आवे छे कारण के उभी प्रतिमा माटे कंड बीजुं विधान नथी.
३- प्र० अर्वाचीन प्रतिष्ठा-पूजा विधिओमां 'सेवंतरां' नाम पुष्पाने माटे ठेक ठेकाणे आवे छे तो सेवंतरां पुष्पो केवां थतां हशे ?
आजे सेवंतरा पुष्पो होय छे खरां ? ____उ. आजकालनां गुलाबनां पुष्पो एज विधिकारोनां 'सेवंतरा' छे, 'गुलाब' नाम उर्दुभाषानुं छे एनो संस्कृतमा अर्थ 'जलीय पुष्प' थाय छ, 'सेवंतरा' ए 'शतपत्र' शब्दनो अपभ्रंश छे, संस्कृत शब्दकोशोमां 'जलकमलने' 'सहस्रपत्र' अने स्थलकमलने 'शतपत्र' नामथी उल्लेख्यो छे (सहस्रपत्रं कमलं, शतपत्रं कुशेयम् ।) 'कण्टका पद्मनाले' इत्यादि वाक्योमा कमलने कांटा बतावेल छे ते आ, शतपत्रगुलाबने आसरीने ज समजवाना छे, जलकमलने अंगे नहि...
४. प्र. प्राणप्रतिष्ठा एटले शुं ? केटलाक प्रतिष्ठकरावनाराओ अंजनशलाकाने 'प्राणप्रतिष्ठा' कहे छे ए बराबर छ ?
उ० नहिं, अंजनशलाका प्राणप्रतिष्ठा कहेवाती नथी पण प्रतिमामां प्राणापानादि वायुदशकनो न्यास करवो ए प्राणप्रतिष्ठा छे, आजकालनी अंजनशलाकाओमा 'प्राणप्रतिष्ठा' च्यवनकल्याणकनी विधिमां अंतर्गत कराय छे. अंजनशलाकाने प्राणप्रतिष्ठा कहेनारा अजाण
35
A
५. प्र. खंडितप्रतिमाने विसर्जन करवानी क्रिया सत्त्व खेंचवा माटे कराय छे. तो अहियां 'सत्त्व शब्दथी शुं समजवू ? कोइ
|| ४८ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org