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________________ । कल्याणकलिका. खं० २as । प्रस्तावना ।। Adh GP2 एने अंजन खेंचवानी क्रिया पण कहे छे ते बराबर छ ? उ. नहिं, अंजन खेंचवा माटे ए क्रिया नथी, तेम प्रतिष्ठा संबन्धी मंत्र-सत्त्व खेंचनारी पण ए क्रिया नथी, केमके प्रतिमा खंडित थता प्रतिष्ठान सांनिध्य तो स्वयं मटी जाय छे, जीर्णोद्वारनी क्रियामा जे सत्त्व खेचाय छे ते व्यन्तरादि देवरूप सत्त्व खेचाय छे, कोइ लाक्षणिक सुन्दर देवप्रतिमा खंडित थया पछी तेमांथी प्रतिष्ठानुं सांनिध्य मटी जाय छे अने भूत प्रेतादि जातिना हलका देवसत्त्व- तेमा अधिष्ठान थइ जवानो संभव रहे छे, तेवी प्रतिमामा जो कोई- अधिष्ठान थयेल होय ने ते प्रतिमा आमनी आम भंडारी देवाय तो नुकसान थवानो भय रहे छे ते कारणे ते अधिष्ठातृ सत्त्वने बहार काढवानी क्रिया करवी पड़े छे. ६- प्र. माइसाडी अथवा मातृशाटिकानो शो अर्थ छे ? उ० लग्नप्रसंगे कन्या मातृघरमा (माहेरमा) जे साडी ओढे छे ते मातृशाटि कहेवाय छे. तेज प्रकारना कुसुंभी रंगना वस्त्रने प्रतिष्ठा विधिकारो 'माइसाडी' कहे छे. आ विषयमां श्रीचन्द्रसूरिजी कहे छे. "अव्यङ्गां यमलिं दत्त्वा, कारयेदधिवासनाम् । द्वितीया भक्तितो दत्त्वा, प्रतिष्ठां च विधापयेत् ॥" आम श्रीचन्द्रसूरिजी अने एमनी पद्धतिना अनुयायीयो अधिवासना अने प्रतिष्ठामा बे माइसाडीओनुं विधान करे छे त्यारे पादलिप्तप्रतिष्ठापद्धतिना मार्गे चालनारा कल्पकारो अधिवासना समये ज माइसाडी आरोपवानो आदेश करे छे. अने प्रतिष्ठाप्रसंगे श्वेतवस्त्रनु विधान करे छे. ७- प्र. राद्धबलि अने कोरकबलि नो अर्थ शो छ ? उ० राद्धबलि एटले रांधेल नैवेद्य, भले सात धान्यनो खीचड़ो ज होय पण जे अग्नि उपर सीझेल होय ते सर्व राद्धबलि गणाय न d || ४९ ।। का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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