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________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ।। ।। ५० ।। Jain Education International छे ज्यारे मात्र भीजवीने जे बाकला बलि रूपे नंखाय छे ते कोरकबलि कहेवाय छे, पूर्वे बाकला पण रांधीने ज तेमा घृत, खांड, मेवो विगेरे नांखीने उछालता हता पण यति कांतिसागरे आ राद्धबली नाखवानी रीतिने मात्र प्रवाह छे एम कहीने कोरा बाक- लानी हिमायत कर्या पछी एमनी विधिओनो प्रचार थतां विधिकारो कोरी बलि नाखवाने चीले चढी गया छे. ८- प्र० प्रवेशमां कलश-चक्र न मलतुं होय ते प्रतिमाने गभारामा लेइ जइने अंजनशलाका करी शकाय ? उ० नहिं, कोइ प्रतिमानुं अंजन विधान अधिवासना मंडपमां करवानुं होय छे, जेओ कलशचक्रना अभावे प्रतिमानुं अंजन विधान गभारामां करे छे तेओ कल्पविरुद्ध करे छे. ९ प्र० प्रवेशमां कलशचक्र होबुं जोइये ए नियम खरो ? उ० आधुनिक ज्योतिषिओ तथा क्रियाकारकोए नियम मानी लीधो छे, बाकी प्राचीन ज्योतिषशास्त्रमां के प्रतिष्ठाकल्पोमां कलशचक्रनी चर्चा नथी, बसो त्रणसो वर्षोथी ज्योतिषिओ ए स्वरशास्त्रोक्त केटलांक चक्रो अपनावी लीधां छे, वास्तवमां ए वस्तु ज्योतिषिओना घरनी नथी: १० प्र० बिंबप्रवेशमां चंद्र डाबो जमणो ज होवो जाइये संमुखनो अगर पाछलनो नहिं, आम आजकाल केटलाक ज्योतिषाओ कहे छे ते यथार्थ छे ? उ० नहिं, प्रवेशमां चंद्रनुं गोचर बल ज जोवानुं छे, दिशा जोवानी नथी, चंद्र संमुख पृष्ठनो वर्जित कर्यो छे ते प्रसंग गृहारंभनो छे, नहि के प्रवेशनो, ओछी बुद्धीना ज्योतिषीओए आ गृह निर्माण ना विधानने गृहप्रवेशमां जोडीने अज्ञाननुं ज प्रदर्शन कर्तुं छे, चन्द्र काल, पाश, योगिनी आदिनुं जे दिशापरक विधान छे तेनो संबन्ध यात्रा प्रकरणनी साथे छे नहिं के प्रवेशनी साथे . For Private & Personal Use Only ॥ प्रस्ता वना ॥ ।। ५० ।। www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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