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________________ ॥ कल्याण कलिका. खं० २ ।। ॥ ५१ ॥ Jain Education International ११ प्र० प्रतिष्ठा, पूजामां कराता कुंभस्थापनमां कलशचक्र होतुं ज जोइये ए खरुं ? उ० ना, कुंभस्थापनमां कलशचक्र होय ते सारं एवी मान्यता पं० कांतिसागरनी बिंब प्रवेशविधि प्रचलित थया पछीनी छे, पूर्वकालीन कोइ पण विधिमां आ विषेनो उल्लेख मलतो नथी. १२ प्र० प्रतिष्ठादिकार्योमां जवारा क्यारे वाबवा १ उ० जबारा उत्सवना आरंभ पूर्वे ववाय ते वधारे सारं, केमके शीत ऋतुमां मोडा उगता होवाथी बहेला बवाय तो ज देखवा जेवा थाय, पण ए वातनुं ध्यान राखतुं जोइये के वाववानो दिवस जे कार्य निमित्ते ते ववाय छे तेना लग्नथी पहेलांनो बीजो छट्टो के नवमो न होवो जोइये, कारण के आ दिवसोमां शुभ कार्यनिमित्ते यववारक वपन, तथा मंडप अने वेदी आदिनो आरंभ करवानुं वर्जित छे. १३- प्र० प्रतिष्ठा - अंजनशलाका निमित्ते मंडपमां कराता कुंभस्थापननी जोडे क्षेत्रपालनी स्थापना करी तेल सिंदूर चढावे छे ए वस्तु बराबर छे ? उ० नहिं, प्रतिष्ठामंडपमां क्षेत्रपालनी स्थापनानुं विधान नथी, मात्र भगवाननी जमणी दिशामां तेनो मंत्र बोलीने पुष्पाक्षतो बडे पूजवानो उल्लेख छे, सकलचंद्रीय प्रतिष्ठाकल्पमां तेना वर्णननुं एक काव्य छे जेमां अफीण, तेल, गोल, चंदन, पुष्प, धूपोनो भोग स्वीकारवानी प्रार्थना छे, 'सिंदूर' शब्द नथी, वली क्षेत्रपालनो आह्वान अने पूजन मंत्र छे पण स्थापनमंत्र नथी तेम नालिएर अगर पत्थर उपर तेल सिंदूर चढावी क्षेत्रपालनी स्थापना करवानो उल्लेख सुधां अमारी उक्त प्रतिष्ठाकल्पनी कोइ प्रतिमां नथी, वली प्रतिष्ठामंडप जेवा पवित्रस्थानमां तेल सिन्दूरनुं प्रदर्शन के जे वास्तवमां 'रुधिर' नुं प्रतीक छे, आ खरेखर बीभत्स वस्तु छे. १४- प्र० यक्ष यक्षिणीनी प्रतिष्ठा निमित्ते जिनप्रतिष्ठामां पण केटलाक विधिकारो होम करावे छे ए योग्य छे ? For Private & Personal Use Only ॥ प्रस्ता वना ॥ ॥ ५१ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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