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॥ प्रस्तावना ।।
॥ ५२ ।।
उ. जिनप्रतिष्ठामां तो शुं स्वतंत्रपणे यक्ष यक्षिणीनी प्रतिष्ठा होय तो ये होम करवानी आवश्यकता नथी, यक्षयक्षिणी जिनचैत्यमां | ॥ कल्याण- जिनसेवक रूपे प्रतिष्ठित थाय छे नहिं के विशिष्ट देवरूपे, जिन- भक्तो जिन सामीप्यमां अग्निमुखथी भोग्यवस्तुनी स्वप्नमां पण इच्छा | कलिका. न राखे, आचारदिनकरमा जे होमनो निर्देश छे ते तान्त्रिक मतनी छाया छे, बीजा कोइ पण प्रतिष्ठाकल्पकारे ए वस्तुनो स्वीकार को खं०२॥ नथी, पादलिप्तसूरिजी जे तांत्रिक युगना समर्थ विद्वान हता पण तेमणे पोतानी पद्धतिमा हवन- नाम पण निर्देश्यु नथी, आधी समजबुं
जोइये के होम ए जैनोनी क्रिया नथी.
१५-प्र० अंजन शलाका थया पछी जिनबिंबना हाथथी कंकण क्यारे छोडवू ?
उ० जरूरी कारणे अंजनशलाका थया पछी प्रतिमा ज्यारे गादीए बेसी जाय त्यारपछी सौभाग्यमंत्रन्यासपूर्वक पहेले दिवसे कंकण a] छोडवां, अने उतावल न होय तो चंद्रबल पहोचतुं होय ते त्रीजे पांचमे सातमे आदि विषम दिवसे कंकण छोडवानी क्रिया करीने कंकण
छोडवां, स्नात्रकारो नवकार गणीने पण पोतानां कंकण छोडी शके छे. ___१६-प्र० आजकालना केटलाक विधिकारो. दीक्षा कल्याणकनी उजवणी प्रसंगे बधी प्रतिमाओनां कंकण छोडी नाखे छे ए केवु ?
उ० प्रतिष्ठा थया पूर्वेज कंकण छोडी देवां ए भूल छे, जे कार्य निमित्ते कंकण बंधाय छे ते कार्य पूर्ण थया पछी ज कंकण छोडवू पहेला नहिं.
१७-प्र० घर दहेरासरमा मल्लिनाथ, नेमिनाथ अने महावीर आ त्रण तीर्थंकरोनी प्रतिमा न पूजवी आम कहेवाय छे ए शास्त्रोक्त
उ. शास्त्रोक्त तो नथी, पण सर्वप्रथम खरतरगच्छना कोइ आचार्ये लख्यु अने चाली पड्यु, पाछलथी उपाध्याय सकलचंद्रजीए पोताना |
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