________________
ifal
याला
। कल्याण कलिका. खं० २॥
स
। मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।।
अथ प्रतिष्ठा - ___ अधिवासना रात्रिए अने प्रतिष्ठा प्रायः दिवसे थाय. जो लग्न श्रेष्ठ आवतुं होय ते अधिवासना पछीना कोइ लग्नमां अने तेना अभावे अधिवासना लग्नना ज अन्य नवमांशमां प्रतिष्ठा थइ शके छे.
प्रतिष्ठानो समय निकट आवतां प्रथम शांतिबलिक्षेप कर्या पछी चैत्यवंदन करवू, सिद्धाणं बुद्धाणं. कही प्रतिष्ठादेवीनो कायोत्सर्ग करवो, कायोत्सर्गमां लोगस्स, चिन्तववो अने पारीने नीचेनी स्तुति कहेवी.
“यदधिष्ठिताः प्रतिष्ठाः, सर्वाः सर्वास्पदेषु नन्दन्ति । जैनबिम्ब सा विशतु, देवता सुप्रतिष्ठमिदम् ॥१॥
ए पछी शासनदेवता २, क्षेत्रदेवता ३, समस्तवैयावृत्यकरोनो ४, ए कायोत्सर्ग करवा अने एमनी स्तुतिओ कहेवी, श्रावकोए धूप उखेबीने प्रतिमाओ उपर ढांकेल वस्त्र दूर करवू, लग्न समय नजीक आवतां कुंभक करी बिंबे वर्णन्यास करवो, ते आ प्रमाणे 'हाँ' | ललाटे. 'श्री' बे नेत्रो पर, 'ही' हृदय उपर, 'रैं' सर्व संधिस्थानोमां, 'श्लौं' आसन उपर.
लग्नसमय आवतां प्रथम घृतपात्र प्रतिमानी आगल मूकी कालो सुरमो १, घृत २, मधु ३, साकर ४, आ चार पदार्थोथी तैयार करेल अंजन रूपानी बाटकीमां भरी राखेल होय तेमांथी सोनानी सली भरी ते वडे जिनबिम्बोर्नु नेत्रोन्मीलन कर, अने मस्तके अभिमंत्रित | वासक्षेप करवो. प्रतिमाना जमणा काने चंदन चर्च, आचार्य पोतानो जमणो हाथ प्रतिमाना जमणा काने अडकाडी सूरिमंत्र अने अन्य साधु प्रतिष्ठा मंत्रनो त्रण, पांच वा सात वार न्यास करे, आ वे मंत्रो पैकीना एक मंत्रे आचार्य चक्रमुद्रा करीने प्रतिमानो सर्वांग स्पर्श करे, प्रतिष्ठामंत्र आ छे -
"ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिए ॐ हीं स्वाहा ।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org