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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
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॥ मध्यकालीन अंजनशलाका विधि ।।
(लग्न अने नवमांशनो समय आवतां) आचार्ये ३ वार सूरमंत्रधी अने बीजा साधुए “ॐ नमो खीरासवलद्धीणं । ॐ नमो Jads महुआसवलद्धीणं' इत्यादि पूर्वोक्त मंत्रथी अथवा तो "ॐ नमः सान्तये हूँ यूँ हूँ सः" आ अधिवासना मंत्रथी बिम्बोनी अधिवासना करवी, बादमां श्रावके अंजलिओ वडे शाल १, जब २, गेहुँ ३, मग ४, वाल ५, चणा ६, चोला ७, ए सात धान्याने पुष्पवासे मिश्रित करी ते वडे प्रतिमाओने स्नान करावg, पुष्पारोप करवो अने धूप उखेबबो, ए बाद अविधवा चार अथवा अधिक स्वीओए पोखणां करवां, | ते स्त्रियोए यथाशक्ति सुवर्णादिकनु दान करवू, आ वखते फरीने प्रचुर मोदकादि नैवेद्य ढोर्बु, ३६० क्रयाणकोनी पुडीओ ढोबी अने | ते पछी श्रावके घृतनी आरती मंगलदीवो उतारवां अने पछी चैत्यवन्दना करवी, चैत्यवन्दनानी विधि नीचे प्रमाणे छे
(मूलनायकनु चैत्यवन्दन बोली नमुत्थुणं. कही मूलनायकनी स्तुति अने पछीनी बे स्तुतिओ एकंदर ३ स्तुतिओ कह्या पछी) सिद्धाणं बुद्धाणं, कही अधिवासना देवीनो कायोत्सर्ग करवो, कायोत्सर्गमा १ लोगस्स गणवो, उपर अधिवासना देवीनी आ स्तुति कहेवी
पातालमन्तरिक्षं, भवनं वा या समाश्रिता नित्यम् । साऽत्राऽवतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासनादेवी ॥१॥
ए पछी श्रुतदेवता २, शान्तिदेवता ३, अंबा ४, क्षेत्रदेवता ५, शासनदेवता ६, सर्ववैयावृत्त्यकरो ७, अनुक्रमे एओना कायोत्सर्ग करवा अने स्तुतिओ कहेवी, शान्तिदेवतानी स्तुति आ प्रमाणे छे -
श्रीचतुर्विधसंस्य, शासनोन्नतिकारिणः । शिवशान्तिकरी भूयाच्छीमती शान्तिदेवता ॥१॥ पछी आचार्ये बेसीने फरी नीचे प्रमाणे धारणा करवी - "स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसादे धिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम्"
इति अधिवासनाविधि ।
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