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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥स्नात्रभेदाः ।।
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(उपलोट बज लोध्र वीरणिमूल देवदारु क—र कुष्ट एलातज तमालपत्र नाग केसर लवंग ध्रो जेठिमधु ऋद्धि वृद्धि) (५।६।८) कक्काल जाईफल जातिपत्रिका नख चंदन सिल्हक (वीरणी मूलस्थाने हीरवणी मूल । प्रभृति) (२।३।४।५।६।७) प्रामादिका)
(प्रियंगु हलद्र बज सुआ बालो मोथ अतिवि. ९.स्नात्र द्वितीयाष्टवर्ग (मेदा महामेदा सकली पुरमांसी जटामांसी उपलोट एलची लविंग कंकोल खीर कंकोल जीवक ऋषभक तज तमालपत्र नागकेसर जायफल जावंत्री कंकोल नखी महानखी) (२॥३॥४॥७) सिलास(रस) चंदन अगर पत्रज छड नखला (मेदा महामेदा काकोली खीरकाकोली गंडुला कचूरो विरिहाली छडीलो कंकोल मिरची जीवक ऋषभक नखी महानखी) कंद वरधारो आसंधि बडीऔषधि सहस्रमुली)(८)
११.स्नात्र कुसुमजल (२।३।४।५।६।७८) (पतंजारिकाकुष्ट विदारीकंद कचूरो (सेवंत्रा दिपु० जलेक्षि.) कपूर काचरी नखला कंकोडी खीरकंद । १२.स्नात्र गंध स्नानिका (सिल्हक कुष्ट मांसी मुसली बेई) (८)
चंदनाऽगुरु कर्पूरादियुक्त गंधस्नानिका) १०.स्नात्र सवौषधि (हरिद्रा वचा शोफ (२।३।४।५।६।७) बालक मोथ ग्रन्थिपर्णक प्रियंगु मुखास (केसर कर्पूर कस्तुरी अगर चंदन) (८)
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१३.स्नात्रवास (गंधा एव | शुक्लवर्णावासाः)(२।३।४।५।६) (घनसार मिश्र श्रीखंड वास) (७) (चंदन केसर कपूर एतहव्यवास) (८) १४.स्नात्र चंदन (सजल चंदन कल्क) (२।३।४।५।६।७)
(चंदन दुग्ध स्नात्र) (८) १५.स्नात्र कुंकुम (केसरापरनामक कुंकुम) (२।३।४।५।६।७)
(केसर साकर स्नात्र) (4) १६.स्नात्र तीर्थो दक (जलधि-नदी-द्रह कुण्डतीर्थजल (२।३।४७) (गंगा प्रभृति तीर्थोदक) (५) (गंगा सिन्धु प्रमुख १०८ तीर्थोदक) (६) (गंगादिक १०८ तीर्थ) (८)
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