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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ श्री पाद| लिप्तसूरि
प्रणीतः प्रतिष्ठाविधिः ॥
॥ ३३३ ॥
रामा नंदा विण्हू जयसामा सुजससुब्बयाअइरा । सिरिदेवी य पहावइ, तत्तो पउमावई वप्पा ||८|| सिव वम्मा तिसलावि य मायाए नामरूवाउ । ॐ नमो पुव् अन्ते साह ति तओ य वत्तव्यं ।।९।। लोयंतियदेवाणं, तत्तो चउवीसपरिगणो नसिउं । सगमन्तेहिं विहिणा, सोलसविज्जागणओ य तओ ॥१०॥ पुब्बोत्तराइ रोहिणी, पन्नत्ति वज्जसंकला तह य । वज्जंकुसी य अप्पडि-चक्का तह पुरिसदत्ता य ॥११।। काली य महाकाली, गोरी गन्धारी जालमाला य । माणवि वइरोट्टाऽच्छुत्ता माणसि महामाणसी चेव ॥१२॥ वेमाणिया य देवा तत्तो य चउब्विहा सदेवीया । इंदाइ दिसाइ(हि)वई नसेज नियएहि मंतेहिं ॥१३॥ दारे य ठाइ सोमो यमो य वरुणो य तह कुबेरो य । हत्थेसुं वइर-धणुदण्ड-पासगयगाहिणो तह य ॥१४॥ सक्को य जिणासन्नो, णाणादेवा जहोइया बारे । पडिहारो विय तुंबरु मंतो पणवो तओ साहा ॥१५॥ एवं नसिउं सव्वं, पुज्जेओ विविहगन्धमल्लेहिं । नसियब्वो पञ्चंगो, मंतो पडिमाइजत्तेणं ॥१६।। सदसनवधवलवत्थेण, छाइउं वासपुष्फधूपेणं । अहिवासिअ तिन्निवाराउ सूरिणा सूरिमन्तेण ।।१७।। चत्तारि पुरो कलसा सलिलक्खयकणयरुप्पमणिंगभा । वरकुसुमदाम कण्ठो-वसोहिया चन्दणविलित्ता ॥१८॥ जववारयसयवत्ताइघट्टिया रयणमालियाकलिया । मुहपुण्णचत्तचउतंतुगोत्थया होति पासेसु ॥१९॥ मंगलदीवा य तहा, घयगुलपुण्णा तहेक्खुरुक्खाय । वरवन्नअक्खयविचित्त-सोहिया तह य कायज्वा ॥२०॥
ओसहिफलवत्थसुवण्णरयणमुत्ताइयाई विविहाई । अन्नाइंवि गरुय सुदंसणाई दवाई विमलाई ॥२१॥ चित्तबलिगन्धमल्ला, विचित्तकुसुमाई चितवासाई । विविहाई धन्नाई, सुहाई रूवाई उवणेह ॥२२॥
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