________________
ce
SSC
GH
।। कल्याणकलिका. खं. २॥
मावि
श्रीशान्तिवादिवेतालीय अर्हदभिषेक
शा
॥ ४२० ॥
विधिः ॥
SHABANA
आ श्लोक बोली महापद्महदना जले करी अभिषेक करवो १६ देवी तवोपनयता-मभिषेक-जलं दलं विभूतीनाम् पद्मपरागपिशंगं, तेगिच्छि निवासदकललिता ॥२५॥ आ काव्य बोली तेगिच्छि ह्रदना जलनो अभिषेक करवो.
१७ केसरी ह्रदनो जलनो अभिषेक - देवी तवोपनयता-मभिषेक-जलं दलं विभूतिनाम् । पद्मपरागपिशंगं, तेगिच्छ निवासदललिता ॥२६।। आ काव्य बोली केसरी ह्रदना जलनो अभिषेक करवो.
१८ पुण्डरीकह्रदना जलनो अभिषेक - भाति भवतोऽभिषेके, कणदलिकुलकिङ्किणीकलापेन । रुचिरोज्ज्वलेन जिन पौण्डरीकिणी पुण्डरीकेण ॥२७।। आ काव्य बोली पुण्डरीकहदना जलनो अभिषेक करवो.
१९ महापुण्डरीक हृदना जलनो अभिषेक - रिपुसेनाक्लेशकुरङ्ग-संहतिं स्वापतेयशस्यानाम् । स्नपयन्ती जगदीशं, जयति महापौण्डरीकस्था ॥२८॥ आ कान्य बोली महापुण्डरीकहूदना जलनो अभिषेक करवो.
२० मागध-वरदाम-प्रभास नामक तीर्थोना जलनो अभिषेक - कुर्वन्तु तेऽभिषेकं, प्रभासवरदाममागधादीनाम् । तीर्थानामधिपतयः, तत्सलिलैः सारसन्मतयः ॥२९॥ आ काव्य बोली मागध, वरदाम, प्रभास तीर्थोना जलनो अभिषेक करवो. पछी स्नात्रकारे हाथमां पुष्पांजलि लेइ
|| ४२० ।।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org