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________________ Ge || कल्याणकलिका. खं०२॥ ।। २२६ ।। ॐ नम ईशानाय ऐशान्यधिपतये त्रिशूलहस्ताय वृषभवाहनाय सपरिकराय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे IN आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥८॥ || अष्टोत्तर ॐ नमो ब्रह्मणे उर्ध्वलोकाधिष्ठायकाय राजहंसवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे शत स्नात्र आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥९॥ विधि ॥ ॐ नमो नागाय पातालाधिष्ठायकाय पद्मवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ २ बलिं गृहाण २ शान्तिकरो भव, तुष्टिकरो भव, पुष्टि करो भव, शिवंकरो भव स्वाहा ॥१०॥ ___ॐ नम आदित्यसोममंगल-बुधगुरुशुक्राः शनैश्चरो राहुः, केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठंतु ॥ ये केऽपि देवदेव्यो, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठंतु ॥ अमुकग्रामे अमुकगृहे शान्तिस्नात्रमहोत्सवे आगच्छत आगच्छत बलिं गृह्णीत गृह्णीत शान्तिकरो भवंतु, तुष्टिकरा भवंतु, पुष्टिकरा भवंतु, शिवंकरा भवन्तु स्वाहा ॥ विसर्जनना पाठमां “पूजाबलिं गृहाण २ स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा" आ प्रमाणे बोलवु. पछी सोनावाणी १ फूल २ कंकु ३ चंदन ४ हाथमा राखी वाजिंत्र पूर्वक - "ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः" पूर्वमां, “ॐ ह्रीं दिक्पालेभ्यो नमः" दक्षिणमां, "ॐ ह्रीं ग्रहेभ्यो नमः" ऊर्ध्व * दिशामां, "ॐ ह्रीं षोडशमहादेवीभ्यो नमः" पश्चिममां, “ॐ ह्रीँ श्री जिनशासनदेवीदेवेभ्यो नमः" उत्तरमां, ____ उपर प्रमाणे बोली आगे जणावेल दिशाओमां जल छांटg, फूल, कुंकुम, चन्दननी अंजलि भरी नाखवी. ॥ २२६ ॥ काल STRA N था Gue Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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