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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
॥ १७४ ॥
ॐ इहागच्छन्तु जिनाः सिद्धा भगवन्तः स्वसमयेनेहानुग्रहाय भन्यानां भः स्वाहा । अथवा ॐ क्षाँ क्ष्वी ह्रीं क्षौँ भः स्वाहा ।
|| अष्टमा
कहिके अष्टाआ बे पैकीना एक मंत्रनो न्यास करवो, ते पछी श्रावके दृष्टिदोष विघातार्थ लोहाऽस्पृष्ट धोला सरसबोनी पोटली नीचे लखेल मंत्रे
दश अभि७ वार मंत्रीने जिनबिम्बने हाथे बांधवी. पोटली मंत्रवानो मंत्र - "ॐक्षाँ क्ष्वी झी स्वाहा ।"
विधि । सर्व बिम्बोने पोटली बांधी ललाटमां चन्दननी टीली देवी, ए पछी प्रतिष्ठाचार्य (अढार अभिषेक के निश्रा दाता) हाथ जोडीने | आ प्रमाणे विज्ञप्ति करे, -
स्वागता जिनाः सिद्धाः प्रसाददाः सन्तु, प्रसादं धिया कुर्वन्तु, अनुग्रहपरा भवन्तु, भव्यानां स्वागतमनुस्वागतम् ।। ते पछी श्रावक सर्पप दहि घृत अक्षत डाभ आ पांच द्रव्यात्मक अर्ध सुवर्ण पात्रमा लईने हाथ जोडी - ॐ भः अर्घ प्रतीच्छन्तु पूजां गृहन्तु जिनेन्द्रा स्वाहा ।
आ मंत्र बोलवा पूर्वक अर्थपात्र जिन आगल मुकवू, एज रीते श्रावक सरसवादि पांच द्रव्यात्मक अर्घनुं बीजं पात्र हाथमा लईने तथा प्रतिष्ठाचार्य या अष्टादश अभिषेक निश्रादाता वास लईने दिक्पालोनुं नीचे प्रमाणे आह्वान करी अर्घ प्रदान करे.
ॐ इंद्राय आगच्छ आगच्छ, अर्घ प्रतीच्छ प्रतीच्छ, पूजां गृहाण स्वाहा । उपर प्रमाणे पूर्वदिशा संमुख इन्द्रनुं आव्हान करी प्रतिष्ठाचार्य वासक्षेप करे, अने स्नात्रकारो अर्घ चन्दन अक्षत पुष्प उछाले, |
|| १७४ ।। दीपक देखाडे, धूप उखेवे, अग्नि, यम, निक्रति, वरूण, वायु, कुबेर, ईशान, नाग, ब्रह्माने पण ते ते दिशा संमुख आव्हानपूर्वक |
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