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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
|| अष्टमा| हिके अष्टादश अभि
षेक
।। १७३ ॥
विधि ॥
पुष्पांजलि फेंकवी.
जो अंजन शलाकानुं विधान होय तो 'प्रतिष्ठाविधौ' बोलq. पण केवल 'बिंबस्थापनानो ज प्रसंग होय तो 'इह जिनेन्द्रस्थापने' अथवा 'जिनेन्द्रस्थापनाविधौ' आमांथी कोई एक पाठ बोलवो.
श्वेत अथवा पीत सरसवमिश्रित चंदन-गोरोचननो ललाटमां तिलक करवो. तिलक करतां नीचेनुं वाक्य बोलवू.
“भाति भवतो ललाटे, राकाचन्द्रार्धसंनिभे भगवन् । प्राप्तलयो मलयोमव-सिद्धार्थकरोचनातिलकः ॥१॥" तिलक कर्या पछी नीचेनुं कान्य बोलतां मस्तके पुष्प चढावबुं. "किं लोकनाथ ! भवतोऽतिमहर्धतैषा, किं वा स्वकार्यकुशलत्वमिदं जनानाम् । किं वाऽद्भुतः सुमनसां गुण एष कश्चि-दुष्णीषदेशमधिरुह्य विभान्ति येन ॥१॥" नीचे- काव्य बोलीने दशांग धूप उखेववो - “मीनकुरंगमदाऽगुरुसारं, सारसुगंधनिशाकरतारम् । तारमिलन्मलयोत्थविकार, लोकगुरोर्दह धूपमुदारम् ॥१॥" १० सर्वौषधि जल-नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । सकलौषधिसंयुत्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मंत्रिततन्नीरनिवहेन ॥१०॥ ॐ नमो जिनाय हाँ अर्हते स्वाहा ।
मंत्रन्यासादि अवान्तर विधि- दशमो अभिषेक थया पछी प्रतिष्ठाचार्ये दृष्टिदोष निवारण माटे प्रतिष्ठाप्य प्रतिमाने पोतानो जमणो हाथ अडकावी नीचेना मंत्रनो न्यास करवो - (आ विधि पण प्रतिष्ठाना अभिषेक समये करवी योग्य लागे छे.)
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||१७३ ।।
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