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________________ ।। कल्याण- कलिका. खं० २ ॥ || प्रस्तावना ।। W दे ना चा चढे छे, अने ए बधुं विधिकारो एवी अदाथी करावे छे के जाणे एम कर्या सिवाय विधि अपूर्ण ज रही जती होय !. (७) अंजन पादलिप्तसूरिजीए तथा ते पछीना 'आचारविधि' आदिना कर्ताओए 'अंजन' तरीके केवल 'मधुघृत' नो ज उपयोग करवा जणाव्यु छे, पण ते पछीना प्रतिष्ठाकारोए नेत्रोन्मीलन माटे अनेक पदार्थोनो उपयोग करवा मांडयो, कोइए कालो सरमो, साकर अने घी, कोइए रातो सरमो साकर अने घी, कोइए आमां बरास वधार्यो तो कोइए सरमो, साकर, बरास, कस्तूरी, मोती, प्रवालां, सोनुं अने चांदी आदिनो वधारो करी नेत्रांजन तैयार करवानुं विधान करीने “रूप्यकचोलकस्थेन,शुद्धेन मधुसर्पिषा । नयनोन्मीलने कुर्यात्, सूरिः स्वर्णशलाकया ॥१॥" आ विधानमां आमूल-चूल परिवर्तन करी नाख्युं छे !. (८) प्रकीर्णक उपर अमोए जे केटलांक उदाहरणो आप्यां छे ते विशेष महत्त्वनां छे, बाकी साधारण परिवर्तनो तो एटलां बधां छे के जेनी गणना करवी पण कठिन छे. प्राचीन प्रतिष्ठाओमां शुं न हतुं अने पाछलथी विधिमां शुं दाखल थयु ए जणाववाने उपर केटलांक उदाहरणो आप्यां छे, एथी विपरीत पूर्वे शुं हतुं अने आजे विधिमां शुं नथी आ विषयना केटलांक दाखला आगेना प्रकरणमा जोवाशे. विधानमांथी निकली गयेली वस्तुओजेम विधानमा घणी वस्तुओ नवी दाखल थइ. छे, तेम थोडीक वस्तुओ जे प्राचीन विधानोमा हती पण नव्यप्रतिष्ठाविधिमांथी - अदृष्य पण धइ छे, ए विषयना केटलांक उदाहरणो नीचे प्रमाणे छे: नामा ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001723
Book TitleKalyan Kalika Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1986
Total Pages660
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Shilpvastu, & Muhurt
File Size11 MB
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