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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
॥ चैत्यप्रतिष्ठाविधि ॥
।। ३७२
चैत्यप्रतिष्ठानां घणां खरां विधिकार्यो बिम्ब प्रतिष्ठा निमित्ते अथवा ध्वजदंड प्रतिष्ठा निमित्ते मंडपमा थइ जाय छे. तेथी आजकाल चैत्य प्रतिष्ठा निमित्ते नीचे प्रमाणे विशेष विधि ज वधारे करवी पडे छे.
सर्व प्रथम शान्तिमंत्रथी मंत्रीने चैत्यने फरतां २४ सूत्रनां तांतणां वींटीने चैत्यनी रक्षा करवी. ते पछी हाथमां पुष्पांजलि लेई - अभिनवसुगंधिविकसित-पुष्पौधभृता सुगंधधूपाढया । चैत्योपरि निपतन्ती सुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ॥१॥
आ काव्य बोली चैत्य उपर पुष्पाञ्जलि नाखवी, प्रतिष्ठाचार्ये वे मध्यमां आंगलीओ उंची करी क्रूरदृष्टिए तर्जनी मुद्रा देखाडवी. श्रावके डाबा हाथमां जल लेइ चैत्य उपर आछोटवू, चैत्यने तिलक करयो, पुष्प चढाववा. धूप उखेवबो.
प्रतिष्ठागुरुए चेत्यने मुद्गरमुद्रा देखाडवी, अने - “ॐ ह्रीँ क्ष्वी सर्वोपद्रवं रक्ष रक्ष स्वाहा" आ मंत्रनो न्यास करी चैत्यनी रक्षा करवी, ए पछी श्रावके प्रथम सात धान्यनी पसली बड़े चैत्यनो अभिषेक करवो.
पछी जिनाभिषेकनी जल बडे अथवा स्नात्र जल बडे चैत्यनो अभिषेक करवो, उपर शुद्ध जले चैत्यनु शिखरान पखाली लुंछी चन्दननो तिलक करवो. ते ज समये पंचरतननी पोटली अने मीढलनु कांकण बांधवू, उपर वस्त्राच्छादन करवू. ते उपर केसर चन्दनादि सुगन्ध पदार्थ छांटवा, फल पुष्प चढाववां, ज्यारे प्रतिष्ठान लग्न आवे त्यारे -
“ॐ वीरे वीरे जयवीरे सेणवीरे महावीरे जये विजये जयन्ते अपराजिते ॐ ह्रीं स्वाहा ।" आ प्रतिष्ठा मंत्र ७ वार भणीने चैत्यनां मस्तके वासक्षेप करवो.
॥ ३७२ ॥
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