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|| शिलान्यास ॥
॥ १७॥
जोइये, कारण के पश्चिम अथवा दक्षिण तरफना डाळवाली शिलाओ अशुभ गणाय छे. ॥ कल्याण-
शिलाभिषेक - शिलाओनो प्रथम अभिषेक करी पछी ते यथास्थान प्रतिष्ठित करवी जोइये, ज्यां शिलान्यास करवानो होय ते
शिलामा कलिका. वास्तुभूमिना ईशान अथवा नैर्ऋत कोणमा अक चोरस वेदी बनाववी, वास्तुमाने जेवडी शिलाओ होय तेने अनुसार अभिषेकवेदी बनावबी, खं०२॥ | शिलाओ ४-५-८-९ पैकी केटली छे, अने तेओर्नु दैर्ध्य-विस्तार केटलो छ, अ बधो विचार करीने शिलाओ सारी रीते रही शके तेवा
प्रमाणमां वेदी बनावीने ते उपर शिलाओ- उपशिलाओ अने कळशोनो अभिषेक करवो. अभिषेक सोनाना, रूपाना, त्रांबाना अथवा माटीना ५ कळशो वडे करवो, ओछामा ओछा १ कलशथी पण अभिषेक करी शकाय छे. गंगा, जमना, नर्मदा, सरस्वती, आदि महानदियो तथा शुभ तीर्थोनां शुद्ध जलो यथालाभ प्राप्त करी अभिषेकना जलमां मेळववां, जलमां सौ षधि चूर्ण, सुवर्ण रज, सुगंधि द्रव्यो अने सुगंधि पुष्पो नाखीने ते जलना भरेला मोटा घडा उपर वस्त्राछादन करी उपर हाथ देइ बृहच्छान्तिनो अखंड पाठ बोलवो अने ते पछी ते जल बडे अभिषेकना कळशो भरवा. शिलाओ, उपशिलाओ अने निधिकलशो वेदी उपर प्रथम यथास्थान गोढवी देवा, वेदीना अभावे
लाकडानो मोटो पाट गोठवीने ते उपर त्रांबा पीतळनी कथरोटो गोठवी तेमा शिलाओ राखीने पण अभिषेकनुं कार्य करवू. बधी तैयारी | थइ गया पछी स्नातविलिप्त स्थपति अथवा गृहपति हाथमां जलकलश लेइने -
"ॐ हिरण्यगर्भाः पाविन्यः, शुचयो दुरितच्छिदः । पुनन्तु शान्ताः श्रीमत्य, आपो युष्मान् मधुच्युतः ॥१॥" + आ मंत्रश्लोक बोली नन्दा शिलानो अभिषेक करे, अ ज प्रकारे प्रत्येक वार कलश भरी उपरनो मंत्र बोली अनुक्रमे 'भद्रा' आदि
बधी शिलाओनो अभिषेक करे. शिलानी साथेज तेनी उपशिला तथा निधि कलशनो पण अभिषेक करी लेबो, बधी शिलाओना अभिषेक थइ गया पछी शुद्ध जले पखाली अने शुद्ध वस्त्रे लूंछीने शिलाओ कोरी करी उपर घसेला केसर चंदनना छांटा नाखवा, धूप उखेववो,
|॥ १७॥
र उखववा,
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